दूर हुए पर हृदय निकट थे
सिया-राम के मध्य बहा जो प्रेम भरा दरिया अपार था, दूर हुए पर हृदय निकट थे कान्हा-राधिका में प्यार था ! सत्यवान संग जा यमलोक सावित्री की प्रीत अनोखी, महल-दुमहले तज कर निकली नहीं भक्त मीरा सी देखी ! ऐसे ऊँचे मानदंड हों प्रेम दिवस तभी मने सार्थक, मृत्यु भी न विछोह कर पाये ऐसा हो उर अमर समर्पण !
बहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार भारती जी !
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