अकेली
उसकी आँखों से गंगा जमुना बह रही थी। उसने क्या सोचा था और क्या हो गया था। अभी कल तक तो उसका छोटा सा सुखी परिवार था, एक प्यारा सा बेटा, मेधावी पति, जो अपनी ख़ुद की कंपनी खोल रहा था। उसके सास-ससुर भी पास ही रहते थे, उनके साथ भी उसके रिश्ते अच्छे थे। पर आज ऐसा क्या हो गया कि जैसे कोई किसी के घरौंदे को तिनका-तिनका बिखे दे, उसका संसार उजड़ रहा है। उसे याद आया, कॉलेज में वह बहुत सक्रिय थी, खेलकूद और तैराकी की प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी। गाड़ी चलाकर कॉलेज आती थी। उनका प्रेम विवाह हुआ था, पर दोनों के परिवार भी एक-दूसरे को जानते थे सो उनके विवाह में कोई अड़चन नहीं आयी। विवाह के दो वर्षों के भीतर ही वह माँ बन गई, उसका सारा समय बच्चे के साथ बीतने लगा, उसने अपने कैरियर की तरफ़ कोई ध्यान ही नहीं दिया। बेटा जब बड़ा हो गया, उसके पास ख़ाली समय था, पति देव अपने काम में इतने व्यस्त थे कि उसका दिन कैसे बीतता है, इसकी उन्हें कोई खबर नहीं थी। वह उन्हें दफ़्तर छोड़ कर आती, बेटे को स्कूल और जब तक पुत्र की छुट्टी होती, वह ख़ुद कभी किसी मॉल या किसी पुस्तकालय में समय बिताने लगी। ऐसे ही एक दिन उसे वह मिला था, वह एक किताब पढ़कर मुस्कुरा रही थी और वह उसके पास की कुर्सी पर बैठा था। उसने सहज ही पूछा, कौन सी पुस्तक ने आपको इतना मोह लिया है, उसने बताया, और तब ज्ञात हुआ, वह किताब उसने भी पढ़ी है।उनकी बातें चल पड़ीं, फिर तो लगभग रोज़ ही मिलना चलता रहा। न कभी उसने पूछा, वह कौन है, न ख़ुद बताया। दिन हफ़्तों में बदल गये और हफ़्ते महीनों में, अब उनका मिलना कॉफ़ी हाउस में भी होने लगा और एक दिन तो उसने घर आने का निमंत्रण भी दे दिया। उसके पति सुबह निकलते थे तो देर रात ही घर आते थे, पुत्र को स्कूल से लाने में अभी देर थी, उसने सोचा क्यों न घर पर ही चाय पी जाये। जब बात बिगड़नी होती है तो सारे कारण बनते चले जाते हैं, वह रसोई में गई तो उसने पूछा क्या बाथरूम का इस्तेमाल कर सकता है, इशारे से उसे बताकर वह चाय बनाने चली गई, तभी दरवाज़े की घंटी बजी। वह दरवाज़ा खोलने गई, उसके पति ने घर में प्रवेश किया तभी उनके कमरे से वह हाथ पोंछता हुआ आया। वे तीनों सकपका गये। वह कुछ कहती इसके पहले ही जल्दी से नमस्ते कहकर वह घर से निकल गया। पति की आँखों में ज्वाला थी, पर उसने कुछ नहीं कहा और वह भी उल्टे पावों लौट गया। रात तक वह लौटा ही नहीं, फ़ोन भी बंद था।स्कूल से बेटे को भी अपने पिता के घर ले गया। सुबह एक संदेश आया, वह उससे सारे संबंध तोड़ना चाहता है, वह चाहे तो अपनी माँ के घर जा सकती है या वहीं रह सकती है। उसने अपने कुछ घंटों के अकेलेपन को दूर करने के लिए एक मित्र बनाया था, पर अब वह सदा के लिए अकेली थी।
ओह्ह... स्तब्ध रह गयी अंत में। बेहद जीवंत,
जवाब देंहटाएंचलचित्र की भाँति.. शब्दों को भावनाओं से गूँथा है आपने। मन में बहुत सारे प्रश्न उठने लगे। सजल मन आक्रोशित,क्षुब्ध और व्यथित हो उठा।
सस्नेह।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी, आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ, शुक्रिया, बहुत बहुत आभार इसे 'पाँच लिंकों के आनंद' पर शामिल करने के लिए।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंहृदयस्पर्शी सुंदर सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अभिलाषा जी !
हटाएंआज भी बिना सोचे विचारे औरत के चरित्र पर संदेह कर लेते हैं,जो बहुत दुखद है, कहानी के अन्त से "लाइफ इन मैट्रो" मुवी की याद आ गई, हृदय स्पर्शी कहानी 🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कामिनी जी !
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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