जीवन
इतनी शिद्दत से जीना होगा
जैसे फूट पडती है कोंपल कोई
सीमेंट की परत को भेदकर,
ऊर्जा बही चली आती है जलधार में
चीर कर सीना पर्वतों का
या उमड़-घुमड़ बरसती है
बदली सावन की !
न कि किसी जलते-बुझते
दीप की मानिंद
या अलसायी सी
छिछली नदी की तरह पड़े रहें
और बीत जाये जीवन... का यह क्रम
लिए जाए मृत्यु के द्वार पर
खड़े होना पड़े सिर झुकाए
देवता के चरणों में चढ़ाने लायक
फूल तो बनना ही होगा
इतनी शिद्दत से जीना होगा…!
वाह्ह क्या सुंदर और सकारात्मकता से ओतप्रोत अभिव्यक्ति। जीवन को जीना भी एक कला है।
जवाब देंहटाएंसस्नेह प्रणाम।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 16 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंजी हां
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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