गहराई में जा सागर के
हँसना व हँसाना यारों
अपना शौक पुराना है,
आज जिसे देखा खिलते
कल उसको मुरझाना है !
जाने कब से दिल-दुनिया
ख़ुद के दुश्मन बने हुए,
बड़े जतन कर के इनको
तम से हमें जगाना है !
बादल नहीं थके अब भी
कब से पानी टपक रहा ,
आसमान की चादर में
हर सुराख़ भरवाना है !
सूख गये पोखर-सरवर
दिल धरती का अब भी नम,
उसके आँचल से लग फिर
जग की प्यास बुझाना है !
दर्द छुपा सुख के पीछे
संग फूल के ज्यों कंटक,
किसी तरह हर बंदे को
माया से भरमाना है !
ऊपर ही सोना भीतर
पीतल, पर उलटा भी है
गहराई में सागर के
सच्चा मोती पाना है !
बहुत सुंदर सकारात्मकता से परिपूर्ण संदेशात्मक रचना अनिता जी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंहंसना और हंसाना, आज के परिवेश में जहां 'TENSION' जैसे शब्द आम हो चले हैं, बहुत जरूरी है।
जवाब देंहटाएंसकारात्मक संदेश देती सुंदर रचना।
वाह ! हर छंद में सार्थक संदेश।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंबेहतरीन पंक्तियाँ 🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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