सोमवार, मार्च 18

गहराई में जा सागर के

गहराई में जा सागर के 


हँसना व हँसाना यारों 

 अपना शौक पुराना है,

आज जिसे देखा खिलते 

कल उसको मुरझाना है !

 

जाने कब से दिल-दुनिया 

ख़ुद के दुश्मन बने हुए, 

बड़े जतन कर के इनको 

तम से हमें जगाना है !

 

बादल नहीं थके अब भी  

कब से पानी टपक रहा ,

आसमान की चादर में 

 हर सुराख़ भरवाना है !


सूख गये पोखर-सरवर  

 दिल धरती का अब भी नम, 

उसके आँचल से लग फिर 

जग की प्यास बुझाना है !


दर्द छुपा सुख  के पीछे  

 संग फूल के ज्यों कंटक, 

किसी तरह  हर बंदे को 

 माया से भरमाना है !


ऊपर ही सोना भीतर 

पीतल, पर उलटा भी है 

गहराई में  सागर के  

सच्चा मोती पाना है !


11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर सकारात्मकता से परिपूर्ण संदेशात्मक रचना अनिता जी।
    सस्नेह।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. हंसना और हंसाना, आज के परिवेश में जहां 'TENSION' जैसे शब्द आम हो चले हैं, बहुत जरूरी है।
    सकारात्मक संदेश देती सुंदर रचना।

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  3. वाह ! हर छंद में सार्थक संदेश।

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