अंबर पर है सूरज का घर
उर अंतर लघु पात्र बना है
सम्मुख विशाल अतीव सागर,
रह जाता प्यासा का प्यासा
ख़ाली रहती उर की गागर !
आशाएँ पलती हैं अनगिन
लेकिन त्याग बहुत छोटा सा,
अंबर पर है सूरज का घर
आख़िर कैसे मिलन घटेगा !
मौन छिपा इक भीतर सबके
बुद्ध विहरते जहाँ रात-दिन,
हर सीमा मन की टूटेगी
उगेंगे तुष्टि के नंदन वन !
ख़ुद ही ज्योति पुष्प बनना है
खिलेगा जो शांति सरवर में,
हर दुख बाधा मिट जाएगी
बढ़ना होगा नयी डगर में !
ख़ुद ही ज्योति पुष्प बनना है
जवाब देंहटाएंखिलेगा जो शांति सरवर में,
हर दुख बाधा मिट जाएगी
बढ़ना होगा नयी डगर में !
सकारात्मक भावों से भरी प्रेरक रचना।
सादर प्रणाम दीदी ।
स्वागत व आभार प्रिय जिज्ञासा जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" बुधवार 29 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजीवंत दृश्य उपस्थित हो गया. गहरी बात कह गया. समंदर और सूरज. अभिनन्दन.
जवाब देंहटाएंसुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया ! स्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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