शृंगार
सज गया स्मित हास अधरों पर
नयनों में स्वप्नों का काजल,
दुल्हन का श्रृंगार हो गया
मुखड़े पर लज्जा का आँचल !
सहज मैत्री, विश्वास, आस्था
आभूषण शोभित करते तन,
करुणा, ममता और सरलता
से ढँका-ढँका मन का हर कण !
ले चल प्रिय गृह आतुर इसको
मधु शीत पवन की डोली में,
नभ देखता नक्षत्रों संग
सूर्य-चन्द्र साक्षी बन आये !
एक चाँद और दूजा उसका अचंभित प्रतिरूप,
जवाब देंहटाएंदुर्लभ संयोग,आतुर धरा देखने को अलौकिक स्वरूप।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २४ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
हटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्र खींचता है आँखों में इसे पढ़ कर। मधुर!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंमंज़र आँखों के सामने ला दिया आपने ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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