सोमवार, सितंबर 23

शृंगार

शृंगार 


सज गया स्मित हास अधरों पर 

नयनों में स्वप्नों का काजल, 

दुल्हन का श्रृंगार हो गया

मुखड़े पर लज्जा का आँचल  !


सहज मैत्री, विश्वास, आस्था 

आभूषण शोभित करते तन, 

करुणा, ममता और सरलता 

से ढँका-ढँका मन का हर कण !


ले चल प्रिय गृह आतुर इसको 

मधु शीत पवन की डोली में, 

नभ देखता नक्षत्रों संग 

 सूर्य-चन्द्र साक्षी बन आये !


9 टिप्‍पणियां:

  1. एक चाँद और दूजा उसका अचंभित प्रतिरूप,
    दुर्लभ संयोग,आतुर धरा देखने को अलौकिक स्वरूप।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २४ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. सुंदर चित्र खींचता है आँखों में इसे पढ़ कर। मधुर!

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  4. मंज़र आँखों के सामने ला दिया आपने ...

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