मंगलवार, अक्तूबर 1

मिट जाएँगे संशय उर से

मिट जाएँगे संशय उर से 


झाँकें कान्हा के नयनों में

प्रेम समंदर एक झलकता, 

डूब गई थी राधा जिसमें 

थाह न कोई जिसकी पाता !


अनगिन नाम दिये हैं जग ने

बाला-लाला कहा कन्हाई, 

प्रीत किंतु इतनी असीम है

जाती न शब्दों में बताई !


सुख-दुख दोनों रहे किनारे 

मध्य में आनंद की धारा, 

राधा बनकर जो बहती है 

यमुना तट पर जिसे पुकारा !


आनंद से उपजी है सृष्टि 

कृष्ण वही आनंद का स्रोत, 

हाथ थाम लें, उसे थमा दें  

 मिटेगा दोनों में हर क्षोभ !


कान्हा दिल की गहराई में 

बसा हुआ मीठी धुन टेरे 

कान लगा कर सुनना इसको 

खिल जाएँगे तन-मन तेरे !



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