गुरुवार, अक्तूबर 17

हकीकत



हकीकत 


"हर रात सपनों से भरी थी 

दिवस कोई ख़ाली कहाँ था 

कहाँ पाते ओ ! रब तुझे हम 

बंद जग का हर इक मकाँ था" 



जाना कहाँ था, पहुँचे कहाँ हैं 

दाता का दर सदा ही खुला है 


 भटके थे राह अब चेत आया 

क्या वह मिलेगा जो था गँवाया 


भूले हुए जब घर लौट आते 

कहते हैं, फिर न भूले कहाते 


माँ देखे पथ पिता बाट तकते 

जल्दी जरा ठिकाने को लौटें 


अब भी समय है इसे न गँवायें 

अपनी हकीकत जानें, जतायें 


16 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति।
    हकीकत सहजता से समझ पाना भी साधारण जन के लिए आसान भी तो नहीं है।
    सस्नेह सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. आपने सही कहा है, बहुत बहुत आभार श्वेता जी !

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  2. जीवन जीने की हकीकत समझाती
    बहुत अच्छी रचना
    बधाई

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  3. भटके थे राह अब चेत आया

    क्या वह मिलेगा जो था गँवाया


    भूले हुए जब घर लौट आते

    कहते हैं, फिर न भूले कहाते

    जब जागो तभी सवेरा.. ये सवेरा हर किसी के जीवन में आये तब न...
    बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन ।

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    उत्तर
    1. यह सवेरा हर किसी के जीवन में आये, कितनी सुंदर बात कही है आपने, स्वागत व आभार !

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  4. जब जागे तब ही सवेरा। सवेरा अपनी जगह ही राहत है। पर सुबह उठना तो पड़ेगा ! दस्तक देती रचना।

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  5. ये हकीकत जितना जल्दी समझ आए अच्छा है ...

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