रविवार, नवंबर 17

प्रेम

प्रेम 


प्रेम के क्षण में 

स्वर्ग बन जाती है दुनिया 

देव बन जाता है मन 

जो देना चाहता है 

सारे वरदान 

इस जगत को 

प्रेम की नन्ही सी किरण

मिटा देती है सारा तम

खिल जाता है मन उपवन 

प्रेम की तरंग 

भिगो देती है 

आसपास के तटों को 

जब उठती है हास्य के सागर में 

प्रेम दिव्य है 

मानव का मूल है 

पर जो ढक जाता है 

द्वेष और नासमझी के पहाड़ों से

धारा में मीलों नीचे दबे 

हीरे की तरह 

अनदेखा ही रह जाता है 

मन की खुदाई कर उसे पाना है 

प्रियतम के मुकुट में सजाना है 

बार-बार सुननी हैं प्रेम गाथायें 

और गीत प्रेम का गाना है ! 


12 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम के क्षण में
    स्वर्ग बन जाती है दुनिया
    देव बन जाता है मन
    जो देना चाहता है
    सारे वरदान …,
    बहुत सुन्दर विचारात्मक अभिव्यक्ति ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 18 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. बहुत सुन्दर ! 'यह प्रेम को पन्थ करार है री, तलवार की धार पे धावनो है'

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  4. वाह! एकदम सच है! प्रेम में, देव बन जाता है मन!

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