प्रेम
प्रेम के क्षण में
स्वर्ग बन जाती है दुनिया
देव बन जाता है मन
जो देना चाहता है
सारे वरदान
इस जगत को
प्रेम की नन्ही सी किरण
मिटा देती है सारा तम
खिल जाता है मन उपवन
प्रेम की तरंग
भिगो देती है
आसपास के तटों को
जब उठती है हास्य के सागर में
प्रेम दिव्य है
मानव का मूल है
पर जो ढक जाता है
द्वेष और नासमझी के पहाड़ों से
धारा में मीलों नीचे दबे
हीरे की तरह
अनदेखा ही रह जाता है
मन की खुदाई कर उसे पाना है
प्रियतम के मुकुट में सजाना है
बार-बार सुननी हैं प्रेम गाथायें
और गीत प्रेम का गाना है !
प्रेम के क्षण में
जवाब देंहटाएंस्वर्ग बन जाती है दुनिया
देव बन जाता है मन
जो देना चाहता है
सारे वरदान …,
बहुत सुन्दर विचारात्मक अभिव्यक्ति ।
स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 18 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! 'यह प्रेम को पन्थ करार है री, तलवार की धार पे धावनो है'
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाह! एकदम सच है! प्रेम में, देव बन जाता है मन!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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