प्रेम
प्रेम कहा नहीं जा सकता
वैसे ही जैसे कोई
महसूस नहीं कर सकता
दूसरे की बाँह में होता दर्द
हर अनुभव बन जाता है
कुछ और ही
जब कहा जाता है शब्दों में
मौन की भाषा में ही
व्यक्त होते हैं
जीवन के गहरे रहस्य
शांत होती चेतना
अपने आप में पूर्ण है
जैसे ही मुड़ती है बाहर
अपूर्णता का दंश
सहना होता है
सब छोड़ कर ही
जाया जा सकता है
भीतर उस नीरव सन्नाटे में
जहाँ दूसरा कोई नहीं
किसी ने कहा है सच ही
प्रेम गली अति सांकरी !