मंगलवार, अप्रैल 8

प्रेम

प्रेम 


प्रेम कहा नहीं जा सकता 

वैसे ही जैसे कोई 

महसूस नहीं कर सकता 

दूसरे की बाँह में होता दर्द 

हर अनुभव बन जाता है 

कुछ और ही 

जब कहा जाता है शब्दों में 

मौन की भाषा में ही 

व्यक्त होते हैं 

जीवन के गहरे रहस्य 

शांत होती चेतना 

अपने आप में पूर्ण है 

जैसे ही मुड़ती है बाहर 

अपूर्णता का दंश 

सहना होता है 

सब छोड़ कर ही 

जाया जा सकता है 

भीतर उस नीरव सन्नाटे में 

जहाँ दूसरा कोई नहीं 

किसी ने कहा है सच ही 

प्रेम गली अति सांकरी !


11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर उद्भावना ! मन को गहरे छूती कविता ..

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    1. स्वागत व आभार प्रियंका जी, आप की उपस्थिति उत्साह जगाती है

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  2. बहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    Welcome to my blog

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  4. 'प्रेम' निःशुल्क होते हुए भी इस जगत का सबसे महंगा सुख।
    बेहद खूबसूरत रचना।

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    1. सही कहा है आपने, सबके पास है पर सब ख़ाली हैं इससे,स्वागत व आभार !

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