ऊपर-नीचे जग है क्रीड़ा
गहराई में जाकर देखें
एक धरा से उपजे हैं सब,
ऊँचाई पर बैठ निहारें
सूक्ष्म हुए से खो जाते तब !
रहे धरा पर उसको पीड़ा
ऊपर-नीचे जग है क्रीड़ा,
ज्यों निद्रा में सब खो जाये
स्वप्नों में भी मन बहलाये !
लेकिन एक अवस्था चौथी
जिसमें तीनों एक हुए हैं,
जगना, सोना, स्वप्न देखना
तीनों जहां विलीन हुए हैं !
वहीं ठिकाना मिला जिसे गर
सदा तृप्त, हर्षित हो गाए,
जुड़ अनंत ऊर्जा से निशदिन
तीनों में वह आये-जाये !
आपका आध्यात्म भाव मन मोहक है .., भाव विभोर कर देने वाली अति सुन्दर रचना । सादर नमस्कार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 जुलाई 2025को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!