शुक्रवार, जुलाई 4

ऊपर-नीचे जग है क्रीड़ा

ऊपर-नीचे जग है क्रीड़ा


गहराई में जाकर देखें 

एक धरा से उपजे हैं सब, 

ऊँचाई पर बैठ निहारें 

सूक्ष्म हुए से खो जाते तब !


रहे धरा पर उसको  पीड़ा 

ऊपर-नीचे जग है क्रीड़ा, 

ज्यों निद्रा में सब खो जाये 

स्वप्नों में भी मन बहलाये ! 


लेकिन एक अवस्था चौथी 

जिसमें तीनों एक हुए हैं, 

जगना, सोना, स्वप्न देखना 

तीनों जहां विलीन हुए हैं !


वहीं ठिकाना मिला जिसे गर 

सदा तृप्त, हर्षित हो गाए, 

जुड़ अनंत ऊर्जा से निशदिन 

तीनों में वह आये-जाये !


3 टिप्‍पणियां:

  1. आपका आध्यात्म भाव मन मोहक है .., भाव विभोर कर देने वाली अति सुन्दर रचना । सादर नमस्कार!

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 जुलाई 2025को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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