नई मंज़िल का पता पा 
नई मंज़िल का पता पा 
दूर हों अज्ञान से हम 
कामनाएँ मिट रहें, 
स्वयं में ही तृप्त हो मन  
 कोई अभाव न खले !
किसी क्षण में वह परम मिल 
उसी पथ पर ले चले, 
दूर होगी हर इक कलल 
संग उसके मन हँसे !
यज्ञ की ज्वाला उठेगी
मिलन का उत्सव मने, 
नई मंज़िल का पता पा  
ज्योति सा मन खिल उठे !
 
 
 
 
 
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 24 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर , सहजता से उस रब से जुड़ा जा सकता है , जिस सुख की चाह में मन दरबदर भटकता है ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंनई मंज़िल का पता पा
जवाब देंहटाएंज्योति सा मन खिल उठे
यूँ खिले कि चेतना सजग हो ..आमीन । अभिनंदन, अनीता जी ।
सुंदर प्रतिक्रिया!! स्वागत व आभार नूपुर जी !
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