सजगता
छुपे हुए हैं भेड़िये छद्म रूप में
जो रोकते हैं कदमों को
आगे बढ़ने से
नहीं काम आते मोह से बंधे जन
सहायक होता है कोई अन्य ही
अस्तित्त्व से भेजा हुआ
सजग रहना होगा हर पल
यदि चलते जाना है
अमृत पथ पर
कंटक रोक न लें
पाहन बाधा न बनें
‘आज’ फल है ‘कल’ का
‘आज’ ही ‘कल’ बनेगा
बह जायेगा हर कलुष
जब सजगता का
छल-छल जल बहेगा !
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अमृतमय
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंकुछ खुले भी घूम रहे हैं दिव्य रूप में :) |
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं आप, अपना होश क़ायम रहे तो ही रक्षा हो सकती है
हटाएंबहुत जरूरी है सजगता ।
जवाब देंहटाएंसहज,सरल सार्थक संदेश।
सादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३० सितंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी, पाँच लिंकों के आनंद पर आने से रचना कई लोगों तक पहुँच जाती है
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंआपकी यह कविता बहुत अच्छी है! मुझे पसंद आया कि यह हमें छिपी हुई मुश्किलों के बावजूद आगे बढ़ने के लिए सचेत रहने की बात करती है। यह सोच कि मदद अक्सर अनजाने स्रोतों से आती है, बहुत प्रेरक है। आपने जो “आज” और “कल” का जो संबंध बताया गया है, वह भी बहुत सार्थक है।
जवाब देंहटाएंकविता को इतनी गहराई से समझने के लिए शुक्रिया, आपकी टिप्पणियाँ बहुत सार्थक हैं, आभार!
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