जीवन राग
मिट जाते हैं सारे द्वन्द्व
झर जाता है हर विरोध
ख़त्म हो जाता है सदा के लिए संघर्ष
जब नत मस्तक होता है मन (तेरे सम्मुख)
खो जाती है हर चाह
विलीन हो जाती है जगत की कामना
तुष्टि, पुष्टि और संतुष्टि भी
खिलौनों सी प्रतीत होती है
तब कर्मबंधन नहीं बंधता
जीवन राग बन जाता है !
पात्र
ऋषि मंत्रों के द्रष्टा थे
देखते थे, देख लेते थे
अस्तित्त्व में छुपे विचारों को
सारा ज्ञान सिंचित है कहीं
बस उसे उजागर करना है
जैसे जल बहुत है कूप में
उसे पात्र में भरना है
हम कब और कैसे पात्र बनें
यही तय करना है !

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 12 नवंबर 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
बहुत बहुत आभार!
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंदोनों ही रचनाएँ अत्यन्त सुन्दर सार्थक है ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंदोनों रचना बेहद सुंदर हैं और सार्थक संदेश दे रहे।
जवाब देंहटाएंसस्नेह
सादर।
स्वागत व आभार श्वेता जी !
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