शुक्रवार, नवंबर 7

अँधेरा और प्रकाश

अँधेरा और प्रकाश  


अंधेरे में बदल जाती हैं चीजें 

जो है 

वह नहीं दिखायी देता 

जो नहीं है 

वह नयी शक्लें धर लेता है 

अंधेरा भय जगाता है 

अंधेरा बाहर का हो या भीतर का 

परिणाम वही रहता है 

देख सके जो पार अंधेरे के 

ऐसी आँख जगानी है 

प्रकाश की एक नन्ही सी किरण 

उस पार से लानी है 

कितना भी बड़ा हो अँधेरा 

मिट जाएगा 

शांति और मौन की तरह 

छुपा प्रकाश बाहर आयेगा 

तब ज्ञात होगा

जो है 

वही तो प्रकट हो रहा है 

भीतर अज्ञान है 

तो मोह, क्रोध और भय की बेलें पनपेंगी 

कभी शोक सताएगा 

कभी घेर लेगा विषाद 

भीतर ज्ञान है 

तो आनंद की फसल लहलहायेगी !

किंतु जो मूल में है 

अंततः वही बच जाता है 

जो ओढ़ा हुआ है 

वह एक न एक दिन

 झर जाता है  

ओढ़ा हुआ अज्ञान 

भी उतर जाएगा 

और उस दिन 

जीवन पूरी तरह मुस्कुरायेगा !

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