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मंगलवार, फ़रवरी 7

स्वाद हो या रास का सा

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स्वाद हो या रास का सा एक शीतल सा धुआं है या धुंधलका शाम का सा, एक ज्योति रक्त वर्णी एक दीपक अनदिखा सा  ! नाद अनहद गूँजता यूँ ...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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