नहीं चाहिए
किसी को नहीं चाहिए
कोई भी दुःख, पीड़ा या उलझन
मिला भी है उसे हज़ार बार प्रेम का वर्तन !
पर याद करता है केवल उदासी के लम्हे
सुख के सूरज की छवि बने भी तो कैसे
सुस्वप्नों की स्मृति कहाँ आई
पर झट जमा लेता है दुःख की काई
सुरति से स्वच्छ करना होगा
फिर आशा और विश्वास का जल भरना होगा
उर आनंद लहरियाँ स्वतः उठेंगी
भीतर-बाहर सब शीतल करेंगी
हमें वरदानों को सम्मुख करना है
क्योंकि इस धरा पर पहले से ही
काफ़ी है बोझ दुखों का
निर्भार होकर हर कदम रखना है !