कल दोपहर हम असम से कोलकाता के लिए रवाना हुए। एयरपोर्ट से सीधे स्टेशन का रुख़ किया, जहां से हमें बनारस के लिए कालका मेल पकड़नी थी। सुबह नींद खुली तो सासाराम आ गया था। खेतों में सुनहरी फसल खड़ी थी, कहीं कट रही थी, कहीं कटने के इंतज़ार में। कहीं मीलों तक फैले खेत ख़ाली पड़े थे। खेतों में आदमी और औरतें दोनों काम कर रहे थे। मुगलसराय स्टेशन पर उतरते ही एक टैक्सी वाला सामने आ गया, उसके पास अम्बेस्डर कार थी। कहने लगा एक दो वर्षों में यह कारें दिखना बंद हो जायेंगी, अब पुर्ज़े नहीं मिलते इसके।ननद के घर पहुँचे तो सामान ऊपर तक पहुँचा गया, बनारस में ही ऐसे टैक्सी ड्राइवर मिल सकते हैं। अगले हफ़्ते पुत्र भी आ रहा है, कह कर गया है, उसे भी वही लेने जायेगा।कल सुबह नाश्ते के बाद हम सभी को गंगा घाट जाना है, परसों वापस लौटेंगे। गंगा स्नान, मणिकर्णिका घाट और विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने हैं। परसों शाम को पंचकर्मा केंद्र जाना है। दुनिया के कई देशों से लोग बनारस आते हैं। बाबा विश्वनाथ की इस नगरी को प्राचीन सप्तपुरियों में स्थान मिलने के कारण काशी की महिमा अपार है।
सुबह नींद जल्दी खुल गई। अस्तित्त्व हमें हर पल अपनी ओर बुलाता है। उसके सान्निध्य में हम एक पल में ही तृप्त हो सकते हैं, पर अगले ही पल हमारी बुद्धि अनेक क्षेत्रों में भ्रमण करने लगती है। सदा उपलब्ध दिव्य ऊर्जा को हम यूँ ही गँवा देते हैं। हमारा होटल बिल्कुल गंगा घाट पर स्थित है। इसका नाम मीर घाट है, अपेक्षाकृत काफ़ी साफ़-सुथरा और आरामदेह है।बाहर की गर्मी का अहसास इस कमरे की ठंडक में नहीं हो रहा है। सामान रखकर हम सभी दशाश्वमेध घाट तक गये। शीतला माता के मंदिर के सामने लोगों की क़तार लगी हुई थी। आस-पास की गंदगी से जैसे उन्हें कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ रहा था।कीचड़, सूखे हुए फूल, पत्ते और कहीं कागज के टुकड़े, प्लास्टिक की थैलियाँ इधर-उधर बिखरी हुई थीं। शायद सुबह सफ़ाई हुई होगी, पर यहाँ दिन भर यात्रियों का ताँता लगा रहता है, और अधिकतर गाँवों से आने वाले लोग होते हैं, जिन्हें शायद साफ़-सफ़ाई से ज़्यादा लगाव नहीं होता। विविध दृश्यों को देखते हुए हम कुछ फल ख़रीद कर वापस लौटे।
दोपहर बाद हम मणिकर्णिका घाट गये, जहां का दृश्य विचित्र था। दस-बारह शव जल रहे थे, जैसे ही एक शव जलता, वे चिता पर पानी डालकर उसे ठंडा कर देते व फूल चुनकर गंगा में बहा देते थे। सीढ़ियों पर कुछ लोग बैठे थे, जिनके प्रियजन उस पार जा रहे थे, पर कोई रोना-धोना नहीं था। उत्सव सा ही लग रहा था, मृत्यु का उत्सव ! लकड़ियों के ढेर लगे थे और तेज हवा में चितायें धू-धू कर जल रही थीं। पुआल में एक अंगारा रखकर चिता जलाने के लिए लाया जाता था, देखते ही देखते नई-नई देहें चिता पर रखी जा रही थीं। यह क्रम चौबीस घंटे चलता रहता है। कहते हैं काशी में मरने वालों को मोक्ष मिल जाता है। शिव का स्थान है काशी। गंगा की धारा हज़ारों वर्षों से बह रही है, मृतकों को अपने आश्रय में लेती आ रही है, फिर भी लोग इसे पावनी गंगा मानते हैं। अभी कुछ देर बाद हम भी इसकी धारा में स्नान करेंगे। अपने अंदर के कल्मष को दूर करने में यह स्नान अवश्य ही सहायक होगा।
दोपहर बाद चार बजे हम नाव में सवार होकर गंगा पार गये, जहाँ पहले से कुछ नावें खड़ी थीं, लोग स्नान कर रहे थे। पानी पहले तो शीतल लगा फिर तन अभ्यस्त हो गया। गंगा के पावन जल का स्पर्श अत्यंत सुखकारक था, कभी-कभी पैरों के नीचे लोगों के छोड़े हुए वस्त्र छू जाते थे। सफ़ाई की बहुत आवश्यकता है यहाँ पर, लोगों की भीड़ अनवरत आती रहती है कि सफ़ाई के लिए अलग से समय निकालना कठिन होता होगा। वापस आकर शाम को हम दशाश्वमेध घाट पर आरती देखने गये। गोदौलिया चौराहे के आगे कोई वाहन नहीं जाता, लोगों का विशाल हुजूम यहाँ रोज़ ही आता है, जैसे कोई मेला लगा हो। किसी त्योहार के होने पर यात्रियों की भीड़ कुछ अधिक ही बढ़ जाती है। घाट का वातावरण दिव्य प्रतीत हो रहा था। आरती के लिए विशेष मंच बनाये जाते हैं, जिनपर फूलों की पंखुड़ियाँ बिछायी गई थीं। सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित सात पुजारियों ने मंत्रोच्चरण व घंटा ध्वनि के साथ आरती आरम्भ की। गायक और वादकगण के साथ वेदी पर बैठकर सुनने का सौभाग्य मिला। भजन सुमधुर थे और आरती भव्य थी।अद्भुत क्षण थे वे, परमात्मा की कृपा का अनुभव हो रहा था। आरती समाप्त होने पर होटल में स्वादिष्ट भोजन ग्रहण किया। पुन: बाहर निकले, आगे बढ़ते हुए हम काशी विश्वनाथ कारिडोर के मुख्य द्वार पर पहुँच गये। भारत माता के नक़्शे के साथ मूर्ति भी विशाल प्रांगण में बायीं और लगी थी और दूसरी ओर अहल्याबाई की मूर्ति थी। बाबा विश्वनाथ के मंदिर के दर्शन किए, वहाँ पुलिस का सख़्त इंतज़ाम था। वहाँ से लौटते हुए मार्ग में माँ अन्नपूर्णा का मंदिर, शनिदेव, बड़े हनुमान, माँ विशालाक्षी तथा कुछ अन्य छोटे मंदिर भी देखे। एक जगह मलाई वाला दूध बिक रहा था, उसका आनंद लिया और होटल लौट आये। आकाश में चंद्रमा देदीपम्यान हो रहे थे और हवा शीतल थी। कुछ देर ध्यान किया। साढ़े दस बजे सुबह चार बजे का अलार्म लगाकर हम निद्रादेवी की शरण में चले गये।
अब प्रातः काल हो गया है। आकाश में हल्की लालिमा दिखनी शुरू हो गई है। होटल के कमरे से बाहर बालकनी से सूर्योदय का दृश्य हमने कैमरे में क़ैद कर लिया है।अब सूर्योदय का दर्शन करते हुए हम साधना करना चाहते हैं। गंगा तट पर प्राणायाम तथा योगासन करने का सुअवसर बार-बार नहीं मिलता। कुशल योग शिक्षक ने तट पर योगासन करवाए। उसके बाद सभी उस दुकान पर चाय पीने गये, जो यहाँ अति प्रसिद्ध है। वहाँ लोग पंक्ति में खड़े थे, दुकानदार हरेक को ताजी चाय बनाकर देता था, लेमन टी या मसाला चाय। एक वृद्ध वहाँ खड़ा था, मैंने उसे अपना कप पकड़ा दिया, वह तत्क्षण हमारा शुभचिंतक हो गया। जब दुकानदार ने शेष पैसे वापस नहीं दिये तो वह चिंतित हो गया, बाद में हमने एक चाय और ली, तब वह निश्चिंत होकर चला गया। वहाँ से लौटे तो मन में घाट पर ध्यान करने की इच्छा प्रबल हो गई थी, एक चबूतरे पर बैठकर गंगा की लहरों से आती ठंडक तथा सूर्य की नव रश्मियों का स्पर्श करते हुए कुछ देर ध्यान किया। साढ़े आठ बजे हम नाश्ते के लिए गये। मार्ग में वाराही देवी के मंदिर में दर्शन किए, यह मंदिर एक गली में स्थित है, यहाँ दर्शन भी विचित्र ढंग से होते हैं, ऊपर से एक चौकोर छेद में से झांककर नीचे देखना था, नीचे जिस कक्ष में मूर्ति रखी थी, वहाँ जाना संभव नहीं था। वाराणसी की हर गली में कोई न कोई छोटा बड़ा मंदिर है। अद्भुत नगरी है है यह। इसके बाद नौका में गंगा विहार की बारी थी। नाव चलाते हुए नाविक कई रोचक बातें बता रहा था। जिन फ़िल्मों की शूटिंग गंगा किनारे हुई है, उनके नाम उसे याद थे। नदी में सैकड़ों पक्षी आ-जा रहे थे। हमने उन्हें दान डाला, वे आवाज़ लगाने पर निकट आते और दाना लेकर उड़ जाते।
शाम को चार बजे हम ‘स्पर्श आयुर्वैदिक केंद्र’ के लिए निकले।जहां का अनुभव वर्णनातीत है। कपूर मिले सुगंधित तेल से शिरोधारा का हमारा पहला अनुभव था। इसके बाद वाष्प स्नान करवाया गया।वहाँ से लौटे तो तन-मन हल्के हो गये थे। रात्रि को अच्छी नींद आयी। अगले दिन कुछ मित्र परिवारों से मिलने जाना था। पहले मित्र की बिटिया की नन्ही गुड़िया से पहली बार मिले, बहुत नटखट है। दूसरी जगह गये तो वहाँ शोक का माहौल था, कुछ समय पहले परिवार के मुखिया की मृत्यु हो गई थी। कुछ देर में सब सामान्य हो गया।शाम को हम निकट स्थित पार्क में टहलने गये। वापसी में अंधेरा हो गया था। सब तैयार हुए, एक शादी में जाना था। मंडप सुंदर सजा था। भोजन भी अच्छा था। दाल बाटी चूरमा का आनंद लिया। देर रात घर लौटे।
अगले दिन सुबह अस्सी घाट पर सुबह के समय होने वाली भव्य व अलौकिक आरती में भाग लिया।पाँच तत्त्वों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए युवा साधिकाओं ने वेद के मंत्रों का उच्चारण किया। धूप, कपूर, अग्नि, मोर पंख तथा चंवर आदि से आरती संपन्न हुई। हमने पुष्पांजलि अर्पण की। इसके बाद शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम था। तब तक पूर्व में लालिमा प्रगाढ़ हो गई थी। सूर्य का लाल गोला जल से ऊपर उठ रहा था।हमने सुंदर चित्र उतारे, मिट्टी के कप में चाय पी और न चाहते हुए भी गंगा के सान्निध्य को छोड़कर वापस लौट आये। दिन का समय ख़रीदारी के लिए रखा था, धूप बहुत तेज थी। शायद धूप लग गई, रात को स्वास्थ्य बिगड़ गया। सुबह ननद ने आमपन्ना बनाकर पिलाया, आम के छिलकों से हथेली व पैरों के तलवों की मालिश की। शाम को पुदीने का शरबत और भी कुछ घरेलू उपाय किए। मोहल्ले के डाक्टर भी घर आकर देख गये। फ़ीस भी नहीं ली। उनकी बातों से बहुत उत्साह मिला। बनारस की हवा में कुछ बात है, लोग ख़ुशदिल हैं और बड़े दिल वाले भी। एक पुरानी परिचिता का फ़ोन आया, वह अपने घर आमंत्रित कर रही थीं। एक पुराने मित्र दंपति मिलने आये। गृहणी की बातें बड़ी रोचक थीं। हरी-भरी सब्ज़ी देखकर उनकी तबियत हरी-भरी हो जाती है और चाय का पानी खौले उसके पहले उनका खून खौलने लगता है।देवरानी की शिकायत कर रही थीं और बहू के सुस्त होने की भी। उनके जाते ही मन ही मन जीवन जीने की कला के सूत्र दोहराये, मन की समता बनाये रखना, जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार करना, दूसरों की बातों से प्रभावित न होना, अन्यों की भूलों को क्षमा करना, वर्तमान में रहना। आत्मीयता, सरलता और सरसता जीवन में हों तो विकार नहीं सताते। कल हमें कोलकाता जाना है।
आज दोपहर हम कोलकाता के गेस्ट हाउस पहुँचे हैं। रात को एक मित्र परिवार की बिटिया के विवाह में सम्मिलित होना है। शाम तक का समय बिताना था सो हम निकट स्थित फ़ोरम मॉल देखने चले गये।गुड्डू ने हमारे लिए चाय मंगायी और अपने लिए कॉफ़ी, साथ में कुकीज़। चाय काफ़ी बड़े से सुंदर कपों में परोसी गई थी, बिल भी काफ़ी आया होगा। शानदार चमकती हुई दुकानें थी फ़ोरम में। नीचे उतर कर आये तो छोटे-छोटे बच्चे नंगे बदन मिट्टी में खेल रहे थे। जिनके पास घर तक नहीं है, शिक्षा तो दूर की बात है। इस दुनिया में कितना असमानता है। किंतु इस सबके पीछे एक तत्व है जिसने सबको बाँधा हुआ है, और जो हर हाल में भीतर शक्ति देता है।
कल सुबह लगभग दस बजे हम विवाह स्थल पर पहुँचे थे। बहुत अच्छा इंतज़ाम था। पूजा चल रही थी।मेहँदी की रस्म हुई। दोपहर बाद लौट आये, शाम को पुन: गये। वहाँ कई रस्में हुईं, दूल्हे का स्वागत, जयमाला, फेरे, शुभ दृष्टि और कन्यादान मामा के द्वारा किया गया। कुल मिलाकर सभी कुछ बहुत शांति से और भव्यता के साथ संपन्न हुआ। बंगाली दुल्हन द्वारा मारवाड़ी दूल्हे के चारों और फेरे लेने की प्रथा अनोखी थी। एक समरसता पूरे वक्त बनी हुई थी, दूल्हे की माँ बहुत सुलझे हुए विचारों वाली महिला हैं।आज हमें वापस जाना है। घर पहुँच कर भी कुछ दिन तक हम यात्रा की बातें करते रहे।