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सुहृद
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रविवार, अक्टूबर 24
जब उर अंधकार खलता है
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जब उर अंधकार खलता है जगमग शिखि समान तब कोई सुहृद सहज आकर मिलता है पूर्ण हुआ वह राह दिखाता नहीं अधूरापन टिकता है अविरल बहे काव्य की धारा...
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