मन पाए विश्राम जहाँ
नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !
शुक्रवार, अक्टूबर 14
बूंद जैसे ओस की हो
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बूंद जैसे ओस की हो जल रही है ज्योति भीतर तिमिर पर घनघोर छाया, स्रोत है अमृत का सुखकर किन्तु मन तृप्ति न पाया ! औषधि के घट भरे हैं वृक्ष स...
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बुधवार, अक्टूबर 12
एक बार दीवाली ऐसी
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एक बार दीवाली ऐसी बाहर दीप जलाये अनगिन भीतर रही अमावस काली, ज्योति पर्व मने कुछ ऐसा मन अंतर छाये उजियाली ! तन का पोर-पोर उजला हो फूट-फूट...
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सोमवार, अक्टूबर 10
क्या दमन ही आज की पहचान है
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क्या दमन ही आज की पहचान है मूल्य बदले ब्रांड में बिक रहा इंसान है क्या दमन ही आज की पहचान है ! सर्वमान्य सच बनी है, मनुज की आधीनता मुक्त...
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शनिवार, अक्टूबर 8
मैं
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मैं मृत्यु पाश में पड़ा एक देह छोड़ अभी सम्भल ही रहा था... कि गहन अंधकार में बोया गया नयी देह धरा में शापित था रहने को उसी कन्दरा में बंद ...
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शुक्रवार, अक्टूबर 7
कोई है
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कोई है सुनो ! कोई है जो प्रतिपल तुम्हारे साथ है तुम्हें दुलराता हुआ सहलाता हुआ आश्वस्त करता हुआ ! कोई है जो छा जाना चाहता है तुम्हारी पल...
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बुधवार, अक्टूबर 5
सूरज ऐसा पथिक अनूठा
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सूरज ऐसा पथिक अनूठा रोज अँधेरे से लड़ता है रोज गगन में वह बढ़ता है, सूरज ऐसा पथिक अनूठा नित नूतन गाथा गढ़ता है ! नित्य नए संकट जो आते घनघ...
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मंगलवार, अक्टूबर 4
दुलियाजान में दुर्गापूजा
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माँ तेरे रूप अनेक जगज्जननी ! हे मूल प्रकृति ! ज्योतिस्वरूपा सनातनी, जगदम्बा, माँ सरस्वती लक्ष्मी, गंगा, पार्वती ! दुर्गा देवी सदा सहाय ज...
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सोमवार, अक्टूबर 3
स्वर्ग धरा पे लाए कौन
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स्वर्ग धरा पे लाए कौन अवसर नहीं चूकता कोई नर्क गढ़े चले जाता है, नर्क का ही अभ्यास हो चला स्वर्ग धरा पे लाए कौन ? शक होता ह...
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