मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

शुक्रवार, अक्टूबर 29

टेर लगाती इक विहंगिनी

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टेर लगाती इक विहंगिनी इन्द्रनील सा नभ नीरव है लो अवसान हुआ दिनकर का, इंगुर छाया पश्चिम में ज्यों   हो श्रृंगार सांध्य बाला का ! उडुगण छुपे ह...
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मंगलवार, अक्टूबर 26

जाना है उस दूर डगर पर

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जाना है उस दूर डगर पर दिल में किसी शिखर को धरना सरक-सरक कर बहुत जी लिए, पंख लगें उर की सुगंध को गरल बंध के बहुत पी लिए ! जाना है उस दूर डगर ...
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रविवार, अक्टूबर 24

जब उर अंधकार खलता है

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जब उर अंधकार खलता है  जगमग शिखि समान तब कोई  सुहृद सहज आकर मिलता है   पूर्ण हुआ वह राह दिखाता नहीं अधूरापन टिकता है  अविरल बहे काव्य की धारा...
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गुरुवार, अक्टूबर 21

शून्य का अर्थ

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शून्य का अर्थ घुटनों पर नोटबुक कलम हाथ में  मानो कोरा काग़ज़ आमंत्रण दे  दिल से होते  कुछ बंध उतरे  मन व हाथों में यह कैसा नाता है  अंतर्जगत...
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मंगलवार, अक्टूबर 19

इतिहास बार-बार दोहराता है स्वयं को

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इतिहास बार-बार दोहराता है स्वयं को  मंदिर तोड़े जा रहे हैं  खंडित हो रही हैं मूर्तियाँ  धर्म के नाम पर अत्याचार और हैवानियत का  एक बार फिर प...
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सोमवार, अक्टूबर 18

लेकिन सच है पार शब्द के

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लेकिन सच है पार शब्द के कुदरत अपने गहन मौन में निशदिन उसकी खबर दे रही, सूक्ष्म इशारे करे विपिन भी  गुपचुप वन की डगर कह रही !  पल में नभ पर ब...
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शुक्रवार, अक्टूबर 15

विजयादशमी

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विजयादशमी  आज विजयादशमी है ! आज भी तो रावण के पुतले जलेंगे, क्या वर्ष भर हम रावण से मुक्त रहेंगे ? नहीं,...तब तक नहीं जब तक, दस इन्द्रियों व...
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बुधवार, अक्टूबर 13

अहंकार छाया है

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अहंकार छाया है इच्छा जब सिमट गयी    खुद का भान हुआ,    करने की फ़ांस मिटी  दीप जल ध्यान का ! वहीं समाधान मिला  जीवन सवाल का,  स्वयं की ही खो...
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सोमवार, अक्टूबर 11

भू से लेकर अंतरिक्ष तक

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भू से लेकर अंतरिक्ष तक कोई अपनों से भी अपना  निशदिन रहता संग हमारे, मन जिसको भुला-भुला देता  जीवन की आपाधापी में ! कोमल परस, पुकार मधुर सी  ...
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शुक्रवार, अक्टूबर 8

काली माँ, कपालिनी अम्बा

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काली माँ, कपालिनी अम्बा कल्याणी, निर्गुणा, भवानी अखिल विश्व आश्रयीदात्री, वसुंधरा, भूदेवी, जननी धी, श्री, कांति, क्षमा, सुमात्री ! श्रद्धा, ...
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बुधवार, अक्टूबर 6

देवी का आगमन सुशोभन

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देवी का आगमन  सुशोभन  देवी दुर्गा जय महेश्वरी   राजेश्वरी, मात जगदम्बा,   आश्विन शुक्ल नवरात्रि शारद अद्भुत उत्सव कालरात्रि का !  देवी का आग...
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सोमवार, अक्टूबर 4

अनंत के दर्पण में

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अनंत के दर्पण में  अंतर के तनाव को  आत्मा के अभाव को  भावों का रूप बनाकर   कविता रचती है ! मानो पंक में कमल उगाती   जीवन में कुछ अर्थ भरती ह...
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गुरुवार, सितंबर 30

वही

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वही  एक अनंत विश्वास  छा  जाता है जब  जो सदा से वहीं था  सचेत हो जाता है मन उसके प्रति  तो चुप लगा लेता है स्वतः ही  वह अखंड मौन ही समेटे हु...
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सोमवार, सितंबर 27

अस्तित्त्व और चेतना

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अस्तित्त्व और चेतना  ज्यों हंस के श्वेत पंखों में  बसी है धवलता  हरे-भरे जंगल में रची-बसी हरीतिमा  जैसे चाँद से पृथक नहीं ज्योत्स्ना  और सूर...
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बुधवार, सितंबर 22

गीता

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गीता  सत् के आधार पर ही  असत् की नौका डोलती है  कभी दिखती  कभी हो जाती ओझल  खुद अपना भेद खोलती है  विशालकाय तारे भी  टूटा करते  जन्मे थे जो ...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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