तलाश
हर तलाश ख़ुद से दूर लिए जाती है
जिंदगी हर बार यही तो सिखाती है
खुदी में डूब कर ही उसको पाया है
अगर ढूँढा किसी ने सिर्फ़ गँवाया है
दिल यह छोटा सा भला कब खोज पाएगा
मिलन हुआ भी तो कहाँ उसे बैठायेगा
हो रही है सारी खोज जल की मरुथल में
न बुझेगी प्यास जिगर सूना रह जाएगा
उठाकर आँख जरा देखो यहीं पाओगे
वरना यूँही यह दिल तकता रह जाएगा
प्रीत का बीज सोया उसे जगाना है
खिल उठेगा खुशबुओं से भर जाएगा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 11 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !
हटाएंहर तलाश खुद से दूर लिए जाती है .. सचमुच बहुत बड़ी बात है । जितना खोजों , जितनी बार देखो पहले से अलग ही मिलेगा शायद यह भी नेति नेति का ही एक रूप है ।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाएं कुछ पल तो खुद से दूर कर ही देती हैं ।
सुंदर और सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु आभार गिरिजा जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंहर तलाश खुद से खुद को दूर ले जाती है और हर तलाश में हमें एक नयी तलाश मिल जाती है.. बिल्कुल सही अनीता जी।।
जवाब देंहटाएंविस्तृत प्रतिक्रिया के लिए स्वागत व आभार ऋतु जी !
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