शुक्रवार, जनवरी 10

तलाश




तलाश 

हर तलाश ख़ुद से दूर लिए जाती है 
जिंदगी हर बार यही तो सिखाती है 

खुदी में डूब कर ही उसको पाया है 
अगर ढूँढा किसी ने सिर्फ़ गँवाया है 

दिल यह छोटा सा भला कब खोज पाएगा
मिलन हुआ भी तो कहाँ उसे बैठायेगा 

हो रही है सारी खोज जल की मरुथल में 
 न बुझेगी प्यास जिगर सूना रह जाएगा 

उठाकर आँख जरा देखो यहीं पाओगे 
वरना यूँही यह दिल तकता रह जाएगा

प्रीत का बीज सोया उसे जगाना है 
खिल उठेगा खुशबुओं से भर जाएगा  

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 11 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. हर तलाश खुद से दूर लिए जाती है .. सचमुच बहुत बड़ी बात है । जितना खोजों , जितनी बार देखो पहले से अलग ही मिलेगा शायद यह भी नेति नेति का ही एक रूप है ।
    आपकी रचनाएं कुछ पल तो खुद से दूर कर ही देती हैं ।

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    1. सुंदर और सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु आभार गिरिजा जी !

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  3. हर तलाश खुद से खुद को दूर ले जाती है और हर तलाश में हमें एक नयी तलाश मिल जाती है.. बिल्कुल सही अनीता जी।।

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    1. विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए स्वागत व आभार ऋतु जी !

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