पाथेय
जीवन की शाम आये
इससे पहले
थोड़ी सी तो मुस्कान समो लें भीतर
पाथेय पास हो अपने
तो रास्ता सहज ही कट जाएगा
राह का हर अँधेरा
ख़ुद में ही सिमट जाएगा
भरी दोपहरी में
जीवन की
यदि शिकायत ही करते रह गये
तो ख़ाली हाथ जाना होगा
फिर उस दीर्घ मार्ग पर
कोई न ठिकाना होगा !
सत्य
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 09 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
हटाएंअगर मुस्कान के बदले, पीड़ा समेट लें अपने भीतर, तो वही साथ जाएगी। चिरपरिचित सहयात्री के साथ रहने से सुविधा होती है।
जवाब देंहटाएंअंधेरा और घना हो जाएगा बस इतना ही
हटाएंवाह! बहुत सुन्दर...एक दम सत्य कहा आपनें ..
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शुभा जी !
हटाएंवाह पाथेय सभी को रखना चाहिये साथ में ।
जवाब देंहटाएंमैंने भी कुछ ऐसे ही लिखा था --
किसी अजनबी शहर से गुजरते हुए
मुझे अक्सर अहसास होता है
कि बहुत जरूरी होती है,
सजगता, समझ ,और जानकारी
उस शहर के--इतिहास--भूगोल की
पर्स में मीठी यादों की पर्याप्त पूँजी
डायरी में नोट बहुत खास
अपनों के नाम ।
किसी अपने का पता ,फोन नं.
ताकि शहर की गलियों, चौराहों को
पार किया जासके यकीन के साथ ।
वाह ! वाक़ई दुनिया के शहरों में भी यक़ीन के साथ घूमने के लिए पाथेय बहुत ज़रूरी है, फिर वह देश तो बिलकुल ही अनजाना होगा
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