स्मृतियाँ
दिल के आँगन की मुँडेर पे
यादों की गौरैया चहकी,
फूलों वाले इस मौसम में
मदमाती पुरवैया महकी !
स्मृतियों की सिर ओढ़ चुनरिया
मन राधा ने गठरी खोली,
बौर लदे आमों के वन में
इठलाती कोयलिया बोली !
सिंदूरी वह शाम सुहानी,
बचपन जब हो गया था विदा,
कोई मेघ प्रीत बन बरसा,
अंतर उस पर हो गया फ़िदा !
बाबा की वह हँसती आँखें
माँ का भीगा-भीगा दुलार,
याद आ रही बरसों पहले
भैया की अति मधुर मनुहार !
जीवन कितना बदल गया है
इस मन का अलबम आज खुला,
फेरे वाली साड़ी का पर,
यह फाल अभी तक नहीं खुला I
२६ अगस्त २०१०
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