कहाँ खो गयी
कहाँ खो गयी
लुप्त हो गयी
प्रेम बाँसुरी की धुन प्यारी !
चैन ले गया
वैन दे गया
गोकुल का छलिया गिरधारी !
देने में सुख
चाह ही दुःख
सीख दे रही हर फुलवारी !
मौन हुआ मन
अविचल स्थिर तन
बरसी भीतर रस पिचकारी !
अगन विरह की
तपन हृदय की
जल जाये हर भूल हमारी !
अनिता निहालानी
२७ अक्तूबर २०१०
कहाँ खो गयी लुप्त हो गयी प्रेम की वंशी की धुन प्यारी |
जवाब देंहटाएंSACH ME PATA NAHI KAHA GALI WO BANSI KI PYARI DHUN.
वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
जवाब देंहटाएंचैन ले गया
जवाब देंहटाएंवैन दे गया
गोकुल का छलिया गिरधारी
सुमधुर!!!
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग जज़्बात....दिल से दिल तक....... पर मेरी नई पोस्ट जो आपके ज़िक्र से रोशन है....समय मिले तो ज़रूर पढिये.......गुज़ारिश है |
मौन हुआ मन
जवाब देंहटाएंहै स्थिर तन
बरसी भीतर रस पिचकारीI
..इस दर्शन ने बड़े-बड़े लेखकों, चिंतकों को प्रभावित किया है।
..पढ़कर सुख की अनुभूति हुई।
सुन्दर रचना ..
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