वह इक एल्केमिस्ट विलक्षण !
अहंकार लोहे सा भारी
पिघला उसको कुंदन करता,
ओंकार गुंजन से दिल का
कोना-कोना मंडित करता !
इक निराला कैटेलिस्ट भी !
होने से जिसके सब होता
कुछ करे न सप्रयास वह,
अनायास ही कृपा बरसती
मन ख़ुद ही परिवर्तित होता !
सबसे बड़ा पारखी भी वह !
आरपार सब दिल का परखे
झूठी आशा नहीं दिलाता,
कितना पानी चढ़ा हृदय पर
सच्चे मोती सा चमकाता !
गोता खोरी सीखें उससे !
मन सागर में उतरे गहरे
मणियों, रतनों को फिर पाएँ,
भीतर के प्रांगण को झिलमिल
ज्योति बिन्दुओं से दमकाएं !
एक यात्री दूर देश का !
वाहन बिना सृष्टि में घूमे
अम्बर में डेरा है उसका,
सूर्य चन्द्र हैं सजे थाल में
नित्य वन्दन होता है जिसका !
कुशल है माली बहुत सुजान !
चिदाकाश का बीज गिराता
कृपा वारि से उसे सींचता,
खाद ज्ञान की प्रेम ऊष्मा
देकर पौधा खूब बढ़ाता !
वीणा वादक हृदय वाद्य का !
अंतर्मन को झंकृत करता
देह को चिन्मय और उर्जित,
भाव पुष्प सम सुरभित होते
मेधा जिसको देख चमत्कृत !
bahut sundar varnan... abhibhoot kar dene waali rachna... man ho raha tha ki yah rachna khatam hi na ho...
जवाब देंहटाएंwaah bahut hi badhiya, ekdam hat ke kavita ...
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंजज़्बात पर आपकी टिप्पणी का शुक्रगुज़ार हूँ......क्या कहूँ आपकी कविता कुछ कहने लायक रखती ही नहीं है......जैसे सीधे अन्तःस्थल में प्रवेश कर जाती है |
अंतर्मन को झंकृत करता
जवाब देंहटाएंदेह को चिन्मय और उर्जित
भाव पुष्प सम सुरभित होते
बुद्धि जिसको देख चमत्कृत
झंकृत-पुलकित शब्द...मन उज्जवल हुआ.
बहुत सुन्दर भाव ..अच्छी रचना /
जवाब देंहटाएंआप सभी का तहे दिल से शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण..धन्यवाद अनिता जी
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