हरसिंगार के फूल झरे
हौले से उतरे शाखों से
हरसिंगार के फूल अनूठे !
रूप-रंग, गंध की निधियां
लुटा रहे, मस्त, वैरागी
शेफाली के पुष्प नशीले !
प्रथम किरण ने छुआ भर था
शरमा गए, झर – झर बरसे
कोमल पुष्प बड़े शर्मीले
नयन खोलते अंधकार में
उगा रवि घर छोड़ चले !
नन्हीं सी केसरिया डंडी
पांच पंखुरी श्वेत वर्णीय
खिल तारों सँग होड़ करें !
मदमाती खुशबू के तोहफे
बाँट रहे हैं मुक्त हृदय से
मीलों तक फिजां महकाते !
अनिता निहालानी
३० अक्टूबर २०१०
मन को छू लेने वाली रचना...
जवाब देंहटाएंप्रकृति को तो आपने सजीव कर दिया
जवाब देंहटाएंकविता अच्छी लगी| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंआपने तो सुंदर वादियों को आखों की सामने ला दिया सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंपारिजात महका गया ...बहुत सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंफिरदौस जी, वर्मा जी, सुनील जी और संगीता जी, हमारे लान में खिला हरसिंगार आपके दिलों को महका गया, प्रकृति कितनी महान है ! पारिजात भी इसी का नाम है इस जानकारी के लिये भी आभार !
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पड़कर एक बारगी फिर बचपन में पहुँच गया...सुबह-सुबह स्कूल जाते वक़्त ये फूल रस्ते पे सड़क पे बिखरे हुए दिखते थे....और रात में वहां से गुज़रते वक़्त एक सुहानी खुशबू.......बहुत खूब
बहुत ही उम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंफूल हरसिंगार के ..... रात महकती रही और इस कविता ममें अपनी खुशबू रख गई
जवाब देंहटाएंmujhe aapki rachna dard ki daastaa chahiye 'vatvriksh' ke liye parichay aur tasweer ke saath
जवाब देंहटाएंrasprabha@gmail.com per
बहुत प्रभावित किया।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
ये फूल मुझे बड़े प्यारे लगते हैं। प्यारी सी अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंBeautiful poetry 👌👌💐
जवाब देंहटाएंBahut pyari kavita likhi hai aapne...मन को भा गया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंवाह क्या कविता है हरसिंगार के फूलों तरह हृदय और मन को स्पर्श कर सुगंधित कर देने वाली
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