मन होता है
कोमल रंग भावनाओं के
कुछ नीले गगन पे उकेरूँ,
सारी धरती भर जाये फिर
सच्चाई के बीज बिखेरूं !
छंटे अँधेरा हर इक मन का
कुछ पल मैं सूरज बन जाऊँ,
सहज स्नेह फूटे अंतर में
ऐसे सुंदर गीत सुनाऊँ !
टूटे दिल जुड़ जाएँ फिर से
मैं हर इक को आस बधाऊँ
अंतर में सोई श्रद्धा को
भेज भेज संदेश जगाऊँ !
अनिता निहालानी
१८ फरवरी २०११
टूटे दिल जुड़ जाएँ फिर से मैं हर इक को आस बधाऊँअंतर में सोई श्रद्धा को भेज भेज संदेश जगाऊँ !-बहुत ही मीठी भावना,विश्वास है एक दिन ऐसा हो जायेगा.
जवाब देंहटाएंसारी धरती भर जाये फिर
जवाब देंहटाएंसच्चाई के बीज बिखेरूं !
सुन्दर भाव ..अच्छी रचना
बहुत ही अच्छी भावनाओं को आपने कुछ लाइनें दी हैं । पढ़कर बहुत अच्छा लगा । धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंअनीता जी, बहुत सुंदर विचार हैं। मन प्रसन्न हो गया। बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएं---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएं