दुलियाजान में रामदेव जी
हे युगपुरुष ! हे युग निर्माता !
हे नव भारत भाग्य विधाता !
हे योगी ! सुख, प्रेम प्रदाता
तुम उद्धारक, हे दुःख त्राता !
तुम अनंत शक्ति के वाहक
योगेश्वर, तुम सच्चे नेता !
प्रेम की गंगा बहती तुममें
तुमने कोटि दिलों को जीता !
जाग रहा है सोया भारत
आज तुम्हारी वाणी सुनकर,
करवट लेता ज्यों इतिहास
अंधकार में उगा है दिनकर !
तुम नई चेतना बन आये
कांपे अन्यायी, जन हर्षे,
तोड़ने गुलामी की बेड़ियां
तुम सिंह गर्जना कर बरसे !
तन-मन को तुमने साधा है
हो घोर तपस्वी, कर्मशील तुम,
श्वास- श्वास को देश पे वारा
अद्भुत वक्ता, हो मनस्वी तुम !
शब्दों में शिव का तांडव है
आँखों से हैं राम झलकते,
कृष्ण की गीता बन हुंकारो
नव क्रांति के फूल महकते !
जीवन के हर क्षेत्र के ज्ञाता
कैसे अनुपम ध्यानी, ज्ञानी,
वैद्य अनोखे, किया निदान
भारत की नब्ज पहचानी !
राम-कृष्ण की संतानें हम
सत्य-अहिंसा के पथ छूटे,
डरे हुए सामान्य जन सब
आश्वासन पाकर गए लूटे !
आज पुण्य दिन, बेला अनुपम
दुलियाजान की भूमि पावन,
गूंज उठी हुंकार तुम्हारी
दिशा-दिशा में गूँजा गर्जन !
आज अतीत साकार हो उठा
संत सदा रक्षा को आये,
जब जब भ्रमित हुआ राष्ट्र
संत समाज ही राह दिखाए !
भूला नहीं है भारत अब भी
रामदास व गोविन्द सिंह को,
अन्याय से मुक्त कराने
खड़ा किया था जब सिंहों को !
आज पुनः पुकार समय की
देवत्व तुम्हारा रूप प्रकट,
त्राहि-त्राहि मची हुई है
समस्याओं का जाल विकट !
नयी ऊर्जा सबमें भरती
ओजस्वी वाणी है तुम्हारी,
बदलें खुद को जग को बदलें
जाग उठे चेतना हमारी !
योग की शक्ति भीतर पाके
बाहर सृजन हमें करना है,
आज तुम्हारे नेतृत्व में
देश नया खड़ा करना है !
व्याधि मिटे समाधि पाएँ
ऐसा एक समाज बनायें,
जहाँ न कोई रोगी, पीड़ित
स्वयं की असलियत पा जाएँ !
भ्रष्टाचार मिटे भारत से
पुनर्जागरण, रामराज्य हो,
एक लक्ष्य, एकता साधें
नव गठित भारत, समाज हो !
कोटि कोटि जन साथ तुम्हारे
उद्धारक हो जन-जन के तुम,
पुण्य जगें हैं उनके भी तो
विरोध जिनका करते हो तुम !
अनिता निहालानी
२१ फरवरी २०११
पुण्य जगें हैं उनके भी तो
जवाब देंहटाएंविरोध जिनका करते हो तुम !
सीधी साधी भाषा में गंभीर बात कहने का ढंग , अच्छा लगा बधाई
वाह,वाह ,पढ़ कर आनंद आ गया.
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