यह तो होना ही था....
तेज उमस भरी गर्मी
बरसा नहीं था बादल कुछ दिनों से
पर आज सुबह
रिमझिम ने जगाया नींद से
सहला गयी शीतल पवन
दे गयी कोई संदेशा
बेला, मालती की सुवास
अजाने लोक का
कोई कह गया कान में चले आओ
मंदिर की बढ़ गए कदम
खुदबखुद अल सुबह
खुलने लगे कपाट जिसके
और... झरने लगी प्रार्थनाएं
किसी गहरे मानस से
प्रार्थनाएँ... जो खुद के लिये नहीं थीं
सर्वे भवन्तु सुखिनः....
अचानक मधुर हो गया पोर-पोर
यह क्या हो रहा था
शुभकामनाएँ दे रहे थे पंछी और
पहचान के वे लोग भी
जिनसे उम्मीद नहीं थी...
अपने आप हाथ उठ गए
सेवइयों की ओर
और तैयार हो गयी मीठी खीर...
दनादन कोई बदलवा गया
सारे कुशन कवर... मेजपोश...
जाने कौन पाहुना आ जाये
यह सब हुआ
अभी तो दिन का पहला पहर है
आगे-आगे देखिये होता है क्या....
क्योंकि मैंने इस वर्ष
हवा की छुवन.. और जग की सौगातों को
ईश्वर का उपहार माना है
प्यार, हँसी और हर शुभ को त्योहार माना है...
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि
आज मेरा....
अनिता निहलानी
३० मई २०११