गुरुवार, जून 9

बीतेगा यह दौर भ्रमों का


बीतेगा यह दौर भ्रमों का


घोर तिमिर छाया है नभ में
तारा एक न चन्द्र चमकता,
काले असुरों से घन बादल  
मार्ग न कोई कहीं सूझता !

अंधकार में घूमा करती
दुर्दमन की दानवी छाया,  
मोह ग्रस्त है सोया जग यह
आवेशित कर हंसती माया !

एक किरण नन्ही सी कोई  
अदृश्य पर जले रात-दिन,
एक आँख कभी साथ न छोड़े
नजर टिकाये रहती पल-छिन !

वही किरण पथ दिखलाएगी
राह नजर फिर आ जायेगी,
भ्रम में डूबे जन मानस को
वही मार्ग पर ले आयेगी !

बीतेगा यह दौर भ्रमों का
विश्वासों की फिर जय होगी,  
आरोपों, प्रत्यारोपों की
दुखद श्रंखला खंडित होगी !  

सब मिल कर सहयोग करेंगे  
सत्यमेवजयते  बोलेंगे,
तज स्वार्थ संकीर्णताओं को
बनके प्रेम प्रपात बहेंगे !

ऋषियों, मुनियों का यह भारत
भ्रष्ट राष्ट्र न कहलायेगा,
भीतर से ही  तृप्त हुआ जो
लोभ उसे क्या छल पायेगा !

अनिता निहालानी
९ जून २०११

10 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय अनिता निहालानी जी
    नमस्कार !
    हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

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  2. कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

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  3. भीतर से ही तृप्त हुआ जो
    लोभ उसे क्या छल पायेगा !

    गहन और बहुत सुंदर भाव ...!!

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  4. बीतेगा यह दौर भ्रमों का
    विश्वासों की फिर जय होगी,
    आरोपों, प्रत्यारोपों की
    दुखद श्रंखला खंडित होगी !

    बेहतरीन पंक्तियाँ

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. बीतेगा यह दौर भ्रमों का
    विश्वासों की फिर जय होगी,
    आरोपों, प्रत्यारोपों की
    दुखद श्रंखला खंडित होगी !
    आपकी छंदबद्ध अभिव्यक्ति मन को भाता है।

    जवाब देंहटाएं
  6. ऋषियों, मुनियों का यह भारत
    भ्रष्ट राष्ट्र न कहलायेगा,
    भीतर से ही तृप्त हुआ जो
    लोभ उसे क्या छल पायेगा ..

    सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. बीतेगा यह दौर भ्रमों का
    विश्वासों की फिर जय होगी,
    बहुत अच्छे भाव । मेरी शुभकामनाएँ ।

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  8. ऋषियों, मुनियों का यह भारत
    भ्रष्ट राष्ट्र न कहलायेगा,
    भीतर से ही तृप्त हुआ जो
    लोभ उसे क्या छल पायेगा !

    बेहद उम्दा भावाव्यक्ति।

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  9. आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की किसी पोस्ट की कल होगी हलचल...
    नयी-पुरानी हलचल

    धन्यवाद!

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  10. ऋषियों, मुनियों का यह भारत
    भ्रष्ट राष्ट्र न कहलायेगा,
    भीतर से ही तृप्त हुआ जो
    लोभ उसे क्या छल पायेगा !
    sunder abhivyakti
    rachana

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