यही है जीवन
सुख मिल जाये...
बस थोडा सा सुख मिल जाये
इसी आस में मन मानव का डोला करता
इधर-उधर जा निज शक्ति को तोला करता
यह कर लूं तो मिलेगी तृप्ति
वह पा लूँ तो बस है मुक्ति
इसी फ़िक्र में जीवन भर वह दुःख को सहता
कुछ न कहता
आस बांधता फिर-फिर सुख की
यहाँ नहीं तो वहाँ मिलेगा
कभी तो दिल का फूल खिलेगा
क्या हुआ जो अभी नहीं है
क्या दुनिया में कहीं नहीं है
सिंगापूर भी घूम लिया है
यूरोप में जरूर मिलेगा !
सादे चावल में न हो लेकिन
तर पुलाव में सुख तो होगा
अबकी बरस सितारे डूबे
अगला शुभ-लाभ लाएगा
सब कुछ बेहतर हो जायेगा
जब घर में दो टीवी होंगे
झक-झक खत्म रोज की होगी
बड़े मजे से पसरे-पसरे
अपना-अपना धारावाहिक
अलग-अलग कमरों में बैठे
हम देखेंगे !
नई नौकरी में सुख होगा
नई - नई शादी में शायद
अभी तो जीने की तैयारी
अभी तो काम बहुत है भारी
अभी कहाँ है फुर्सत हमको
अभी तो आगे ही जाना है
रात-दिन को एक किये हैं
सुख का वृक्ष उगाना है
कल होगा सुख
जब सेवानिवृत्ति होगी
हाथ में मोटी पेंशन होगी
बड़े मजे से तब रह लेंगे
अभी तो जो है
वही है जीवन....!
बहुत बढ़िया,
जवाब देंहटाएंबड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
.... भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं
इच्छाएं अनंत हैं ...सुख की चाह कभी खत्म नहीं होती
जवाब देंहटाएंबस इसी चाह मे जीवन गुजरता रहता है मगर इंसान जान ही नही पाता सच्चा सुख कहाँ है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
हमारी तो यह इच्छा है जैसे अब तक गुजरी है आगे भी गुजर जाये तो अच्छा ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुती.....
जवाब देंहटाएंअभी कहाँ है फुर्सत हमको
जवाब देंहटाएंअभी तो आगे ही जाना है
रात-दिन को एक किये हैं
सुख का वृक्ष उगाना है.
सबकी चाहत यही है. सुंदर कविता.
बहुत रोचक!
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