जीवन क्या है
कौन जानता, जीवन क्या है
श्वासों का आना-जाना है ?
जन्म से मृत्यु की घड़ियों में
स्वयं से प्रीत बढाना है ?
जग तो इक आईना ही है
जिसमें खुद की झलक मिल रही,
नए-नए रस्तों पर चल के
एक वही तस्वीर खिल रही !
तन साबुत रखने की खातिर
मन को मार रहा है कोई,
मन को उसका चैन दिलाने
खुद को हार रहा है कोई !
तन-मन से भी ऊब गया जो
भेद सृष्टि के पाना चाहे,
नींद, क्षुधा बिसरा के पल-पल
ज्ञान की जोत जलाना चाहे !
जीवन एक है तल अनेक हैं
सत्य सभी के जुदा यहाँ हैं,
महलों में कोई है उनींदा
फुटपाथों पर नींद जवां है !
अजब खेल है यह जीवन का
सभी यहाँ व्यस्त लगते हैं,
अंत में खाली जाते देखा
जाने क्या दिल में भरते हैं !
अजब खेल है यह जीवन का
जवाब देंहटाएंसभी यहाँ व्यस्त लगते हैं,
अंत में खाली जाते देखा
जाने क्या दिल में भरते हैं !
आपने कटु सत्य कहा है.
सभी इतने व्यस्त रहते हैं कि
जीवन को समझने और जीवन
का असल लाभ उठाने का मौका
ही हाथ से निकल चुका होता है.
आपकी सुन्दर दार्शिनिक प्रस्तुति के लिए आभार.
बहुत ही सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंyahi sachchai hai ant me sab yahi rah jaata hai.
जवाब देंहटाएंगहन अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंजीवन दर्शन और चिंतन..गंभीर विषय की सहज सरल प्रस्तुति. मन को छू गयी.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ.
खुबसूरत कविता
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर
ब्लोगोदय नया एग्रीगेटर
पितृ तुष्टिकरण परियोजना
तन साबुत रखने की खातिर
जवाब देंहटाएंमन को मार रहा है कोई,
मन को उसका चैन दिलाने
खुद को हार रहा है कोई !
तन-मन से भी ऊब गया जो
भेद सृष्टि के पाना चाहे,
नींद, क्षुधा बिसरा के पल-पल
ज्ञान की जोत जलाना चाहे !
जीवन एक है तल अनेक हैं
सत्य सभी के जुदा यहाँ हैं,
महलों में कोई है उनींदा
फुटपाथों पर नींद जवां है !
अजब खेल है यह जीवन का
सभी यहाँ व्यस्त लगते हैं,
अंत में खाली जाते देखा
जाने क्या दिल में भरते हैं !
अनीता जी.......मेरे पास शब्द नहीं है इसकी तारीफ़ के लिए.........नतमस्तक हूँ.........एक गुज़ारिश है जब भी आपकी कवितायों की पुस्तक प्रकाशित हो या हो चुकी हो तो कृपया उसकी एक प्रति मेरे पास ज़रूर भेजें|
जीवन दर्शन में डूबी हुई बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजीवन एक है तल अनेक हैं
जवाब देंहटाएंसत्य सभी के जुदा यहाँ हैं,
महलों में कोई है उनींदा
फुटपाथों पर नींद जवां है !
....बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति..आभार
bahut badhiya
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