जग मुझमें या मैं हूँ जग में
निस्सीम नीलगगन
सौंदर्य बिखरा है चहुँ ओर
कभी रंगीन कभी श्वेत बादलों से सजा कैनवास
घिरती हुई संध्या या उगती हुई भोर
निर्झर स्वर या प्रपात का रोर !
जरा नजर उठाओ तो झलक उठता है रूप
पूछता है मन
कोई तो होगा जिसने गढ़ा होगा यह अनुपम सौंदर्य
चित्रकार थकते नहीं, करते जिसकी नकल
शिल्पी गढते हैं मूर्तियों में जिसकी शकल
सोचते सोचते तंद्रा में डूब गया मन
सुस्व्प्नों में खो गया कण-कण
एक देवदूत से हुई मुलाकात
मौन में ही हुई जिससे बात
दिखाया उसने भीतर एक साम्राज्य
मैं इतना सुंदर हूँ
चौंक कर जगा मन
स्वयं को बाहर भी देख
चकराया ...
मुझमें है जग या मैं हूँ जग में
उसे कुछ समझ न आया ..
सुभानाल्लाह..........बहुत ही खूबसूरत........और लफ्ज़ नहीं हैं मेरे पास तारीफ के लिए|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव हैं रचना के ..
जवाब देंहटाएंadbhut....bahut sunder man ke bhav....shubhkamnayen....
जवाब देंहटाएंवाह्…………अद्भुत चित्रण्।माता रानी आपकी सभी मनोकामनाये पूर्ण करें और अपनी भक्ति और शक्ति से आपके ह्रदय मे अपनी ज्योति जगायें…………सबके लिये नवरात्रि शुभ हों
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंमाँ की कृपा बनी रहे ||
http://dcgpthravikar.blogspot.com/2011/09/blog-post_26.html
नमस्तस्यै नमो नमः
जवाब देंहटाएंमैं इतना सुंदर हूँ
जवाब देंहटाएंचौंक कर जगा मन
स्वयं को बाहर भी देख
चकराया ...
मुझमें है जग या मैं हूँ जग में
उसे कुछ समझ न आया .
बहुत ही प्यारा काव्य चित्र।
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
ये सच है इंसान ऊपर वाले की सबसे खूबसूरत कृति है ... बस जानने की और उस खूबसूरती को अपने आचरण से बनाए रखने की जरूरत है ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं... नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं....
आपका जीवन मंगलमयी रहे ..यही माता से प्रार्थना हैं ..
जय माता दी !!!!!!
♥
जवाब देंहटाएंबहुत श्रेष्ठ रचना है …
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुंदर, पढ़कर खो सा गया प्रकृति मे ।
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