अमृत बन कर तू ढलता है
तुझसे परिचय होना भर है
कदम-कदम पर तू मिलता है,
उर का मंथन कर जो पाले
परम प्रेम से मन खिलता है !
भीतर के उजियाले में ही
सत्य शाश्वत झलक दिखाता,
कण-कण में फिर नजर तू आये
श्वास-श्वास में भीतर आता !
पहले आँसू जग हेतु थे
अब तुझ पर अर्पित होते हैं
अंतर पुष्प अश्रु माल बन
अंतर के तम को धोते हैं !
पात्र यदि मन बन पाए तो
अमृत बन कर तू ढलता है,
हो अर्पित यदि हृदय पतंगा
ज्योति बन कर तू जलता है !
शुभ संकल्प उठें जब मन में
भीतर इन्द्रधनुष उगते हैं,
सुंदरता भी शरमा जाये
ऐसे सहस्र कमल खिलते हैं !
बहुत सुन्दर भाव अनीता जी....
जवाब देंहटाएंसादर.
विद्या जी, शुक्रिया और बहुत सी शुभकामनायें!
हटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसच है...ईश्वर को पाना हो तो हम खुद को इस काबिल करें...
आपकी लेखनी बहुत अच्छी लगी मुझे...
सादर नमन.
शुभकामनाएँ होली की....
अनु जी, आपको भी होली की शुभकामनायें... ईश्वर को हम प्रेम पात्र बना लें तो शेष काम वह खुद ही करवाता है...आभार!
हटाएंbahut sundar,bhavvibhor kar gayi aapki kavita.badhai.
जवाब देंहटाएंशालिनी जी, आपका आना अच्छा लगा. इसी तरह अपनी राय देती रहें...
हटाएंBAHUT SUNDAR BHAVON KI PIROYA HAI AAPNE KAVITA MALA ME .BADHAI .HOLI PARV KI HARDIK SHUBHKAMNAYEN . YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC
जवाब देंहटाएंहोली की आपको भी शुभकामनाओं ! आपका गीत बहुत जोशीला है...शुक्रिया और बधाई इस जज्बे के लिये !
हटाएंभीतर के उजियाले में ही
जवाब देंहटाएंसत्य शाश्वत झलक दिखाता,
कण-कण में फिर नजर तू आये
श्वास-श्वास में भीतर आता !
यही सत्य है और सत्य का दर्शन भी. शिवं को सम्मिलित करके सुन्दरम की ओर गतिशील एक प्रेरक कृति. गूढ़ तथ्यों की सरार अभिव्यक्ति. आभार इस मनमोहक कृति के लिए.
डॉ साहब, आपकी बहूमूल्य राय पाकर मन हर्षित हुआ, आभार!
हटाएंपात्र यदि मन बन पाए तो
जवाब देंहटाएंअमृत बन कर तू ढलता है,
हो अर्पित यदि हृदय पतंगा
ज्योति बन कर तू जलता है !
बिकुल सच है वो तो हमेशा ही अमृत की तरह बरस रहा है हम ही पात्र नहीं बन पाते।
इमरान, आपने सही कहा परमात्मा हर पल हमारे साथ है उसे देखने की नजर हमें पानी है. शुक्रिया व स्वागत !
हटाएंपहले आँसू जग हेतु थे
जवाब देंहटाएंअब तुझ पर अर्पित होते हैं
अंतर पुष्प अश्रु माल बन
अंतर के तम को धोते हैं !....................बहुत खूब ...अपने आराध्य को समर्पित रचना
उम्र के साथ साथ सोच और समझ में परिवर्तन आते हैं ....होली के पर्व की बहुत बहुत शुभकामनएं
अनु जी, सच है उम्र के साथ साथ मन परिपक्व होता है, आपको भी होली मुबारक !
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहोली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
रविकर जी, आपकी काव्यमय टिप्पणी अपनी अलग ही पहचान रखती है, अनुप्रास अलंकार तो आपके बाएं हाथ का खेल है, होली मुबारक !
हटाएंभीतर के उजियाले में ही
जवाब देंहटाएंसत्य शाश्वत झलक दिखाता…………मनोद्गारों को बेहद खूबसूरती से उकेरा है ………सत्य है जब दर्पण साफ़ होगा तभी तो अक्स उभरेगा।
रंगोत्सव की आपको शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त रचना..मन कही एकदम से भाग ही जाता है..
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