अब जो भी बाधा है पथ में
तुमको ही तुमसे मिलना है
खुला हुआ है मन उपवन,
जब जी चाहे चरण धरो तुम
सदा गूंजती है धुन अर्चन !
न अधैर्य से कँपतीं श्वासें
शुभ्र गगन से छाओ भीतर,
दिनकर की रश्मि बन छूओ
कुसुमों की या खुशबू बनकर !
कभी न तुमको बिसराया है
जगते-सोते याद तुम्हारी,
उठती-गिरती पलक में झलके
मेघों में ज्यों द्युति चमकारी !
जाने कब वह घड़ी मिलेगी
कब ढ़ुलकोगे अमृत घट से,
टूटेंगी कब सीमाएं सब
प्रकटोगे श्यामल झुरमुट से !
अब जो भी बाधा है पथ में
वह भी दूर तुम्हें करनी है
सौंप दिया जब शून्य, शून्य में
तुम्हें कालिमा भी हरनी है !
वाह अनीता जी............
जवाब देंहटाएंजाने कब वह घड़ी मिलेगी
कब ढ़ुलकोगे अमृत घट से,
टूटेंगी कब सीमाएं सब
प्रकटोगे श्यामल झुरमुट से !
बहुत सुंदर....
सादर.
बेहद उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भक्तिमयी प्रस्तुति....आभार
जवाब देंहटाएंसौंप दिया जब शून्य, शून्य में
जवाब देंहटाएंतुम्हें कालिमा भी हरनी है !
बहुत सुंदर भाव ...
स्वयम तक स्वयम को ही पहुंचना है ...
बहुत सुन्दर भाव ..और कमाल का लेखन ..
जवाब देंहटाएंअब जो भी बाधा है पथ में
जवाब देंहटाएंवह भी दूर तुम्हें करनी है
सौंप दिया जब शून्य, शून्य में
तुम्हें कालिमा भी हरनी है !
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन पंक्तियाँ।
सौंप दिया जब शून्य, शून्य में....बहुत सुंदर पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंसुंदर अति सुंदर ।
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