गुरुवार, मई 3

आया दांतों पसीना


आया दांतों पसीना


कल रात उन से मुलाकात हुई
कुछ बोध मिला कुछ बात हुई

अगर तन है मकान
तो रूप उसकी बैठक
सजा संवार रखते हैं बड़े जतन से जिसे
लगभग सभी इंसान..

आँखें झरोखे, दिल इबादतघर
अब सब घरों में तो होता नहीं
बड़ा.... सा.. पूजा घर
बहुत हुआ तो किसी आले में
या चलता है स्टोर घर...

फेफड़े, भीतरी खिड़कियाँ
धुएं से धुंधलाए जिनपर लगे शीशे
किसी किसी के.....  

पेट पाक शाला, जहाँ
बड़वाग्नि में पकता भोजन
वहाँ होती है
जिद्दी चिकनाई और ढेर सारा मसाला....

दर्द था दांत में सो हुआ यह मिलन   
न होता तो कहाँ उठती यह चिलमन
नजर भी नहीं आते दांत, जिनसे
जीवन भर सेवा हैं लेते
शुक्रिया एक दफा भी नहीं देते..

गर्म पेय या भोजन लिया मुख में
 सिहर जाता होगा इनेमल तब
इसकी परवाह करते हैं कब
झट से कोई कठोर वस्तु दबा ली
अनजाने उनकी जड़ हिला दी
मीठी चाय बहुत भाती  
पर शामत बेचारे दांतों की आती

ठंडागर्म लगने पर भी टाल ही जाते
अनसुनी कर देते हर गुहार
जब तक दर्द हद से न बढ़ जाये
और दम न तोड़ने लगे कोई दांत
दंत चिकित्सालय तक कदम नहीं बढ़ाये   
चिकित्सक झांकता जब भीतर
मुस्कुराते हुए सर उठाता है
उसे रोग के साथ
सुनहरा भविष्य जो नजर आता है...

दातों से यूँ हुईं कुछ बात
कट गयी सोते जागते रात...


8 टिप्‍पणियां:

  1. :-).....वाह अनीता जी दांतों के दर्द पर भी कविता कह डाली और शारीर को घर के बिम्बों से क्या खूब नवाज़ा है ।

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  2. एकदम वैज्ञानिक कैविता एक उस विषय पर जिस पर सोचना भी मुश्किल ही लगता है।

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  3. सूचनार्थ: ब्लॉग4वार्ता के पाठकों के लिए खुशखबरी है कि वार्ता का प्रकाशन नित्य प्रिंट मीडिया में भी किया जा रहा है, जिससे चिट्ठाकारों को अधिक पाठक उपलब्ध हो सकें। 

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  4. शरीर के कष्ट और उनके निवारण पर अद्भुत रचना...बधाई

    नीरज

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  5. दाँतों की याद तभी आती है जब दर्द हद से गुजारने लगता है. जीवन में सब इसी तरह है जब तक सब सही चलता है उसका शुक्रिया कौन करता है मुश्किल में ही नानी याद आती है. सुंदर कविता गंभीर विचार लिये.

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