याद तेरी
तू प्यार समोए है अनंत
छू जाता पवन झंकोरे में,
कभी लहराती शाखाओं में
कभी झूम रहे इन पत्तों में !
बन सुंदर कीट चमकता है
जुगनू की आभा में छिपता,
कभी कलरव कूकू कोकिल की
कभी हरी दूब में तू हँसता !
सरगोशी सांय सांय की जो
जब पवन सुनाया करती है,
पीपल के पल्लव नाच रहे
बदली छा जाया करती है !
जब सूर्य चमकता है नभ में
मेघों के पार रजत बन के,
जब किरणें तन को छू जातीं
वृक्षों के पत्तों से छन के !
जब कोमल पुष्प की पंखुडियां
झर झर झर जाती हैं यूँही,
तब दिल में तेरी परछाई
इक मौन सी भर जाती यूँही !
आदरणीय अनीता जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
जब कोमल पुष्प की पंखुडियां
झर झर झर जाती हैं यूँही,
तब दिल में तेरी परछाई
इक मौन सी भर जाती यूँही !
....बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
संजय जी, आभार !
हटाएंआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट .....मैं लिखता हूँ पर आपका स्वगत है
आपकी हर रचना बहुत खूबसूरत होती है ...सुकून सा देने वाली
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,आभार आपका !
हटाएंजब कोमल पुष्प की पंखुडियां
जवाब देंहटाएंझर झर झर जाती हैं यूँही,
तब दिल में तेरी परछाई
इक मौन सी भर जाती यूँही !
....बहुत उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति....आभार
हरि अनंत हरि दरश अनंता।
जवाब देंहटाएंसचमुच !
हटाएंसुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर और शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंएक आनंद भरती रहें यूँ ही अपनी सुन्दर रचनाओं से...
जवाब देंहटाएंऔर इसी तरह आप पढ़ती रहें....
हटाएं