प्रिय ब्लोगर साथियों
पिछले माह के अंतिम
सप्ताह में मुझे गोवा जाने का सुअवसर मिला, डायरी लिखने की आदत के चलते उस यात्रा
के अनुभव मैंने शब्दों और चित्रों में बटोर लिए, अब आपसे उन्हें साझा करने आयी
हूँ. आशा है आप भी इसे पढकर भारत के इस सुंदर प्रदेश के बारे में कुछ जानकारी
प्राप्त कर सकेंगे और हो सकता है यह विवरण आपकी अगली यात्रा के लिए प्रेरक भी
सिद्ध हो. तो प्रस्तुत है डायरी की दूसरी प्रविष्टि -
ग्रैंड हयात का सुंदर बगीचा |
वहाँ से हम गोवा का
विश्व प्रसिद्ध दूध सागर प्रपात देखने गए. जो यहाँ से साठ किमी दूर है. कर्नाटक
और गोवा की सीमा पर स्थित यह प्रपात महावीर वन्य जीवन सरंक्षित जंगल में
है. इसकी ऊँचाई एक हजार फीट है. इसके बारे में सुन-पढ़कर हम जब हरे-भरे मार्गों से
गुजर कर वहाँ पहुंचे, जहां से चौदह किमी दूर स्थित प्रपात के लिए पर्यटकों को ले
जाया जाता है तो पता चला कि अक्तूबर माह से ही यात्रा आरम्भ होती है, फ़िलहाल कुछ
बाइकर यात्रियों को रेलवे ट्रैक के किनारे-किनारे पत्थरों पर बाइक चला कर ले जाते
हैं, हिम्मत करके हम भी बाइक पर बैठे पर दो किलोमीटर की रोमांचक यात्रा के बाद ही
लौटना पड़ा, रास्ता बहुत खतरनाक था और बाइकर काफी तेज चला रहे थे. सागर में पानी
में होने वाले रोमांचक खेल भी अभी बंद हैं, अक्तूबर के बाद ही गोवा में आधिकारिक
तौर पर पर्यटन समय का आरम्भ होता है.
गोवा में बहुत
पुराने कई हिंदू मंदिर हैं, दूध सागर तक न जा पाने का दुःख दूर करने का उपाय था कि
मंदिर में जाकर दर्शन करके पुनः उत्साहित हो जाएँ. ड्राइवर हमें अति प्राचीन व
भव्य शांता दुर्गा मंदिर ले गया. जो गोवा की राजधानी पंजिम से तेतीस किमी
दूर पोंडा तालुका में स्थित है. रास्ते से फूल माला खरीदी, यहाँ छोटे-छोटे सफेद कमल के फूल बहुतायत में उगते हैं, उन्ही की मालाएं व गुलदस्ते जगह
जगह बिक रहे थे. पौराणिक कथा है कि जब शिव और
विष्णु में विवाद हो गया तो उन्हें शांत करने के लिए देवी ने शांता दुर्गा का रूप
धरा. मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही एक श्वेत दीप स्तम्भ दिखाई पड़ता है. मंदिर की छतें पिरामिड के आकार की लाल रंग की
हैं. यहाँ की वास्तुकला पर पुर्तगाली प्रभाव स्पष्ट दीखता है. मुख्य कक्ष की
दीवारों पर चांदी मढ़ी है जिस पर सुंदर चित्र बने हैं. हमने सुना कि सोने की एक
पालकी भी वहाँ है जहां उत्सव के अवसर पर देवी को ले जाया जाता है. मंदिर के
भोजनालय में ही प्रसाद जैसा सात्विक भोजन ग्रहण किया. वापसी में घर ले जाने के लिए
कुछ उपहार खरीदे.
गोवा के मंदिरों की पहचान दीप स्तम्भ |
वहाँ से हम गोवा के
दूसरे प्रसिद्ध मंदिर मंगेश मंदिर गए. वास्तुकला में यह शांता दुर्गा मंदिर
के समान ही है. यहाँ स्वच्छता अधिक थी. चांदी का प्रयोग यहाँ भी बहुत ज्यादा किया
गया है. वहाँ से लौटे तो शाम के चार बज चुके थे. थकान से आँखें बोझिल हो रही थीं.
लगभग दो सौ किमी की यात्रा हमने कार में की थी. बिस्तर में पड़ते ही नींद आ गयी,
ऐसा आराम महसूस हुआ जो कड़े श्रम के बाद गांव के किसान को होता होगा. एक घंटा सोकर
शाम के उद्घाटन कार्यक्रम के लिए तैयार हुए साढ़े छह बजे हम हयात होटल पहुंचे. चाय
का वक्त था. पाव भाजी, सैंडविच, बिस्किट, ब्राउन ब्रेड, जिसको जो मन भाये वह ले
सकता था. सात बजे हम हॉल में बैठे, कई गणमान्य व्यक्ति वहाँ थे, कई कम्पनियों के
निदेशक, ओएनजीसी के वासुदेव मुख्य अतिथि थे. नेस ( national association of corrosion engineer )के यू एस अध्यक्ष केविन थे. शिपिंग के हाजरा थे.
कई लोगों ने अपने भाषण दिए उसके बाद भोजन था. पतिदेव के साथ इस कांफ्रेंस में भाग
लेने का अवसर मुझे भी मिल गया था, ज्यादातर लोग सूटेड बूटेड थे पर कुछ यहाँ भी टी
शर्ट पहन कर आ गए थे. टाटा स्टील जमशेदपुर से आयी एक
महिला ने मेरे पास आकर असम की पारम्परिक पोशाक को पहचानते हुए बात करनी शुरू कर
दी, वह ऐसे बात कर रही थी जैसे पुरानी परिचित हो. लौटे तो दस बज गए थे.
क्रमशः
bahut acchha mandi dikhaya. main bhi do baar goa ho kar aayi hun....lekin is mandir k darshan nahi kar sake.
जवाब देंहटाएंअनामिका जी, अब की बार आप गोवा जाएँ तो मंगेश मंदिर अवश्य देखें, आभार!
हटाएंबहुत बढिया.रोचक पल..
जवाब देंहटाएंरोचक यात्रा वृत्तांत....!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और रोचक ।
जवाब देंहटाएंमाहेश्वरी जी, पूनम जी, व इमरान आप सभी का स्वागत व आभार !
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