रविवार, अक्तूबर 28

कुछ सुनहरे पल गोवा में


प्रिय ब्लोगर साथियों
पिछले माह के अंतिम सप्ताह में मुझे गोवा जाने का सुअवसर मिला, डायरी लिखने की आदत के चलते उस यात्रा के अनुभव मैंने शब्दों और चित्रों में बटोर लिए, अब आपसे उन्हें साझा करने आयी हूँ. आशा है आप भी इसे पढकर भारत के इस सुंदर प्रदेश के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त कर सकेंगे और हो सकता है यह विवरण आपकी अगली यात्रा के लिए प्रेरक भी सिद्ध हो. तो प्रस्तुत है डायरी की चौथी व अंतिम प्रविष्टि -



आज भी सुबह साढ़े पांच बजे हम उठे, अँधेरा ही था तब. आज प्रातः भ्रमण न करके कमरे में ही योग के आसन व प्राणायाम किये. ताजे फल, कॉर्न फ्लेक्स, छोले-भटूरे व दोसे का नाश्ता करके हम गोवा के समुद्री तट देखने निकले,  सबसे पहले ताज होटल का कान्दोलिन बीच देखने गए जहां एक पुरानी इमारत के अवशेष थे, जिसकी दीवारों को सागर की लहरें छू रही थीं, एक गोल इमारत थी, सामने ताज होटल था, उसकी चौड़ी दीवारों पर बैठकर सागर की हवाओं का स्पर्श एक अनोखा अनुभव था. लहरों से ओम की ध्वनि आ रही थी. उसके बाद हम आगुडा नामक किले को देखने गए, जहां किसी फिल्म की शूटिंग चल रही थी. पूरी यूनिट अपना सेटअप लगा रही थी. कैमरे, लाइट, म्यूजिक सिस्टम. आगुडा का अर्थ है पानी, यह किला पुर्तगालियों ने डच व मराठा सेनाओं से बचने के लिए बनवाया था. यहाँ मीठे पानी का एक स्रोत था जिससे समुद्री जहाज पानी का भंडारण किया करते थे. किले में एक लाइट हाउस भी है जो दूर से जहाजों को दिशा निर्देश दिया करता रहा होगा


उसके बाद बारी थी वागातुर समुद्र तट की, जहां ऊपर से सागर के सुंदर दृश्यों को निहारते रहे व दृश्यांकन किया. अंजुना तट पर सीढ़ीयों से नीचे उतर कर चट्टानों पर बैठे व फोटोग्राफी की. कलंगुट तट पर रेतीला मैदान था जहां अनेकों दुकानें लगी थीं. हमने कुछ खरीदारी की. रास्ते में एक किताबों की विशाल दुकान में रुके जिसपर लिखा था ‘गोवा का सबसे बड़ा किताब घर’, जहाँ से गोवा के बारे में एक किताब तथा लोकगीतों व नृत्यों पर आधारित एक डीवीडी खरीदा.  दोपहर बाद पुनः हयात जाना था जहां कोरोजन पर पेपर सुने. शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम था. पुराने हिंदी फ़िल्मी गानों की धुन पर नृत्य करने के लिए मेहमान कलाकारों ने श्रोताओं को भी शामिल कर लिया. लौटते हुए दस बज गए थे. अगले दिन फिर नौ बजे हयात पहुंचे कांफ्रेंस में शामिल हुए, ‘कोरोजन और पनिशमेंट’ पर भाषण का दूसरा भाग था. बाद में पतिदेव ने नेस की सदस्यता ग्रहण की. वहाँ से हम बाजार गए, मित्रों के लिए गोवा की मिठाई खरीदी.

दोपहर के भोजन के बाद हम पुराने गोवा के चर्च देखने गए, दो अति प्राचीन चर्च आमने सामने हैं, से कैथ्रेडल तथा सेंट फ्रांसिस चर्च जो गोवा की शान हैं. सोलहवीं शताब्दी में बने ये चर्च वास्तुकला का अद्भुत नमूना हैं. बाहर सुंदर बगीचा है, जिसमें बगुलों का एक झुण्ड आकाश में उडकर एक लॉन से दूसरे में जा रहा था. वहाँ से लौटे तो होटल के पास स्थित बागा मैरीना तट पर गए, पिछले चार दिनों में यहाँ का बदलाव अनोखा था, बीच पर अनेकों दुकानें खुल गयी थीं. बीसियों बार थे, लोग खाना पीना कर रहे थे, कुछ लोग नाच रहे थे. कुछ मसाज करवा रहे थे. लोगों का उत्साह यहाँ देखते ही बनता है. जैसे गोवा मस्ती का पर्याय हो. कुछ समय वहाँ बिता कर हम लौट आए. गोवा में यह हमारी अंतिम रात्रि है, यहाँ होटल में भी मेहमानों की संख्या एकाएक बढ़ गयी है.


आज यहाँ हमारा अंतिम दिन है, अभी कुछ देर पहले ही हम नाश्ता करके आए. पास के मार्केट तक पैदल ही गए, एक छोटा सा उपहार खरीदा, यहाँ होटल के स्टाफ को छोटी-छोटी काजू की चाकलेट्स दीं, इतने दिन यहाँ रहते हुए सभी से परिचय हो गया है. सुबह उठकर सागर तट पर टहलने गए, कुछ लोग रेत पर ही सो रहे थे. एक ग्रुप में देखा दो-तीन लडकियां नशे के बाद अजीब सी हालत में वापस आ रही थीं. यहाँ होटल में भी कल से कमरे से निकलते ही सिगरेट व अल्कोहल की गंध नाक में घुसने लगी है, गोवा में सुबह से मुसाफिर सुरूर में आ जाते हैं. समुद्र तट पर सामिष भोजन करते हैं. तामसिक वृति का उदाहरण है यहाँ का जीवन, जिससे लोगों में संयम, श्रद्धा आदि भावनाएं दब जाती हैं, जो पर्यटक बाहर से आते हैं, वही ऐसा करते हैं, आज पहले दिन की अपेक्षा तट कितना गंदा लग रहा था. भीतर तो सबके वही परमात्मा है. तामसिक वृत्ति का इंसान या तो खाता है, या काम करता है या सोता है चौथा काम उसे आता ही नहीं. उसका कोई घर ही नहीं वह जाये भी कहाँ, जिसको अपना पता नहीं वह इंसान कितना अकेला है इस विशाल दुनिया में. जीवन का ऐसा ही रवैया है.


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