गीत आज ही गाया है
पहले तो आहट भर थी
शायद अब वह आया है,
पहले बस तुतलाहट थी
गीत आज ही गाया है !
सोए-सोए स्वप्न देखते
किसने उसको पाया है,
तम निद्रा से जो जागा
उसे ही केवल भाया है !
देख सकें, न पड़े दिखाई
जो सर्वत्र समाया है,
सुना नहीं जाता उसका स्वर
शून्य ही उसकी छाया है !
जीवन एक लहर सागर की
सागर सा गहराया है,
इस अनंत में सांत वही है
भेद अनोखा जाया है !
जीवन एक लहर सागर की
जवाब देंहटाएंसागर सा गहराया है,
इस अनंत में सांत वही है
भेद अनोखा जाया है !
सुन्दर भाव गीत बेहद सशक्त अभिव्यक्ति .(इस अनंत में शांत वही है )
वीरू भाई, स्वागत व आभार ! सांत=स+अंत अर्थात अंत सहित
हटाएंबहुत ही सुन्दर गीत ... आलोकिक भाव लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर व आशामई पोस्ट।
जवाब देंहटाएंभावमय करती रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आंटी
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/2/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
जवाब देंहटाएंदो
राजश जी, बहुत बहुत आभार !
हटाएंतुतलाते-तुलाते ही तो गाना गाने आ जाता है. साथ में हम भी गुनगुना रहे हैं.
जवाब देंहटाएंअमृता जी, आपकी गुनगुन से तो गीत भी धन्य हो गया..
हटाएंपहले तो आहट भर थी
जवाब देंहटाएंशायद अब वह आया है,
पहले बस तुतलाहट थी
गीत आज ही गाया है ....बहुत अच्छी लगी..
आभार रविकर जी !
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी,संगीता जी, यशवंत व इमरान आप सभी का स्वागत व आभार !
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