अपना-अपना स्वप्न देखते
एक चक्र है सारा जीवन
जन्म-मरण पर अवलंबित,
एक ऊर्जा अविरत बहती
हुई कभी न जो खंडित !
एक बिंदु से शुरू हुआ था
वहीं लौट कर आता है,
किन्तु पुनः नया जीवन
नए कलेवर में आता है !
पंछी, मौसम जीव सभी तो
इसी चक्र से बंधे हुए,
अपना-अपना स्वप्न देखते
नयन सभी के मुंदे हुए !
हुई शाम तो कहीं अजान
कहीं मंत्र, सुवासित धूप,
कहीं आरती, वन्दन अर्चन
कहीं सजा है सुंदर रूप !
एक दिवस अब खो जायेगा
समा काल के भीषण मुख में,
कभी लौट कर न आयेगा
बीता चाहे सुख में दुःख में !
एक रात्रि होगी अन्तिम
तन का दीपक बुझा जा रहा,
यही गगन तब भी तो होगा
पल-पल करते समय जा रहा !
एक बिंदु से शुरू हुआ था
जवाब देंहटाएंवहीं लौट कर आता है,
किन्तु पुनः नया जीवन
नए कलेवर में आता है !
गहन!गहन......सत्य.............हैट्स ऑफ इसके लिए........वक़्त मिले तो जज़्बात पर भी आयें ।
आभार आदरेया -
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
चलती जीवन यात्रा ...अनवरत ...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ....!!
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक रात्रि होगी अन्तिम
जवाब देंहटाएंतन का दीपक बुझा जा रहा,
यही गगन तब भी तो होगा
पल-पल करते समय जा रहा !
..... जीवन के सापेक्ष में एक भावपूर्ण रचना!
काल चक्र ,करबन चक्र पर्यावरण में ज़ारी अन्य चक्र ,समय के साथ सबका प्राकृत संरक्षण होता रहता है .सृष्टि के बनने बिगड़ने का आवधिक चक्र भी चलता रहता है कोस्मिक स्केल पर .बिग बैंग होते रहते हैं यहाँ तक की अन्तरिक्ष और आकाश भी विनष्ट हो जाते हैं काल भी .न कोई रहा है न कोई रहा है .काल भी इसी सृष्टि का हिस्सा है परमात्मा भी इसके कार्य कारण सम्बन्ध से मुक्त नहीं है .
जवाब देंहटाएंएक बिंदु से शुरू हुआ था
जवाब देंहटाएंवहीं लौट कर आता है,
किन्तु पुनः नया जीवन
नए कलेवर में आता है !
....यह जीवन चक्र यूँ ही अनवरत चलता रहता है...बहुत सुन्दर ...आभार
एक रात्रि होगी अन्तिम
जवाब देंहटाएंतन का दीपक बुझा जा रहा,
यही गगन तब भी तो होगा
पल-पल करते समय जा रहा!
जीवन की सच्चाई अंत में यही है.
सुंदर गीत, सुंदर प्रस्तुति.
रविकर जी, रचना जी, कैलाश जी, वन्दना जी, शालिनी जी व अनुपमा जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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