मन बहता हुआ इक धारा था जब
डोलने लगे थे पात पीपल के
जरा नजर भर के निहारा था जब,
तरल हो गया था आलम सारा
निःशब्द होकर उसे पुकारा था जब !
है भी जो, नहीं भी, नजर आया था
दूर सागर का किनारा था जब,
झील का चाँद किसी की खबर लाया
पार उतरने को शिकारा था जब !
मिलीं ढेर नसीहतें, संग उसके
दिल को बस यही न गवारा था जब,
बहा ले गया गम, खुशियाँ सारी
मन बहता हुआ इक धारा था जब !
गहन और बेहद खूबसूरत भाव ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना अनीता जी ....
हाँ, निःशब्द की पुकार और उसी की आवाज में ऐसी क्र गुजरने की शक्ति है। निःशब्द बिना बोले ही सब कुछ बोलता है फिर तो पत्ता क्या चीज है यह ब्रह्माण्ड भी डोलता है ...... बहुत ही प्यारी और सार गर्भित रचना आभार इसकी प्रस्तुति के लिये…
जवाब देंहटाएंगहन और सुन्दर भाव।
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भावपूर्ण रचना...आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति .एक एक बात सही कही है आपने . आभार सौतेली माँ की ही बुराई :सौतेले बाप का जिक्र नहीं आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
जवाब देंहटाएंझील का चाँद किसी की खबर लाया
जवाब देंहटाएंपार उतरने को शिकारा था जब !
बहुत खूब,,, सुन्दर अहसासों से भरी
आभार !
तरल हो गया था आलम सारा
जवाब देंहटाएंनिःशब्द होकर उसे पुकारा था जब !.... बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ ...एक बहुत भावपूर्ण कविता!
सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भावनात्मक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंlatest post होली
उदासी का मर्म लिए है रचना गहरी वेदना से संसिक्त है प्रेम से सराबोर ,हाँ वायुवीय प्रेम से ....
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