खो गया है आदमी
भीड़ ही आती नजर
खो गया है आदमी,
इस जहाँ की इक फ़िकर
हो गया है आदमी !
दूर जा बैठा है खुद
फ़ासलों की हद हुई,
हो नहीं अब लौटना
जो गया है आदमी !
बेखबर ही चल रहा
पास की पूंजी गंवा,
राह भी तो गुम हुई
धो गया है आदमी !
बांटने की कला भूल
संचय की सीख ली,
बंद अपने ही कफन में
सो गया है आदमी !
श्रम बिना सब चाहता
नींद सोये चैन की,
मित्र बन शत्रु स्वयं का
हो गया है आदमी !
प्रार्थना भी कर रहा
व्रत, नियम, उपवास भी,
वश में करने बस खुदा
लो गया है आदमी !
प्रार्थना भी कर रहा
जवाब देंहटाएंव्रत, नियम, उपवास भी,
वश में करने बस खुदा
लो गया है आदमी !
ह्रदय की बात को कह दिया है आपने..जितनी प्रशंसा करूँ कम है..
सुन्दर भाव प्रगटीकरण-
शुभकामनायें-
एक एक पंक्ति बेहतरीन है बहुत ही सुन्दर सी कविता .........हैट्स ऑफ इसके लिए |
जवाब देंहटाएंप्रार्थना भी कर रहा
जवाब देंहटाएंव्रत, नियम, उपवास भी,
वश में करने बस खुदा
लो गया है आदमी !
...वाह!
बांटने की कला भूल
जवाब देंहटाएंसंचय की सीख ली,
बंद अपने ही कफन में
सो गया है आदमी !
...बहुत सटीक और ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
सचमुच आदमी अपने आप से कहीं दूर जा रहा है । प्रभावपूर्ण प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबांटने की कला भूल
जवाब देंहटाएंसंचय की सीख ली,
बंद अपने ही कफन में
सो गया है आदमी !
गूढ अर्थ लिए सुंदर रचना
कल 01/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
आदमी को मारकर ही खा रहा है आदमी। बेहद खूब सूरत रचना है "खो गया है आदमी "आप भी पढ़िए -
जवाब देंहटाएंखो गया है आदमी
खो गया है आदमी
भीड़ ही आती नजर
खो गया है आदमी,
इस जहाँ की इक फ़िकर
हो गया है आदमी !
दूर जा बैठा है खुद
फ़ासलों की हद हुई,
हो नहीं अब लौटना
जो गया है आदमी !
बेखबर ही चल रहा
पास की पूंजी गंवा,
राह भी तो गुम हुई
धो गया है आदमी !
बांटने की कला भूल
संचय की सीख ली,
बंद अपने ही कफन में
सो गया है आदमी !
श्रम बिना सब चाहता
नींद सोये चैन की,
मीत बन शत्रु खुद का
हो गया है आदमी !
प्रार्थना भी कर रहा
व्रत, नियम, उपवास भी,
वश में करने बस खुदा
लो गया है आदमी !
Posted by Anita at शुक्रवार, अगस्त 30, 2013
Labels: आदमी, नियम, प्रार्थना, बेखबर, भीड़, राह, श्रम
जवाब देंहटाएंVirendra Sharma
2 सेकंड पहले Canton के पास
आदमी को मारकर ही खा रहा है आदमी। बेहद खूब सूरत रचना है "खो गया है आदमी "आप भी पढ़िए -
खो गया है आदमी
खो गया है आदमी
भीड़ ही आती नजर
खो गया है आदमी,
इस जहाँ की इक फ़िकर
हो गया है आदमी !
...और आगे देखें
बहुत ही सुन्दर सी कविता
जवाब देंहटाएंबांटने की कला भूल
जवाब देंहटाएंसंचय की सीख ली,
बंद अपने ही कफन में
सो गया है आदमी !
बहुत सुन्दर भाव लिए कविता..
सादर
अनु
भीड़ ही आती नजर
जवाब देंहटाएंखो गया है आदमी,
सुन्दर प्रस्तुति
प्रभावी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधी पाठक जनों का हार्दिक स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/