आज भी देश के कई हिस्सों में बच्चे अभिशप्त हैं खतरनाक रोजगार में काम
करने के लिए, बाल दिवस पर जहाँ सक्षम बच्चे खुशियाँ मना रहे हैं, उन के लिए इस दिन
का कोई महत्व नहीं है.
बाल मजदूर
वह बूढ़े होते इंसान की तरह भयभीत है
नहीं जाना तितलियों के पीछे भागना
रूठना, मचलना याद नहीं
याद हैं वे दंश, वे तीखे अनुभव
जिनकी मार सही है रोज हर रोज
जब नैतिकता शरमायी होगी
चीखा होगा बचपन
रोया होगा फूल कोई
पंछी भी चुपचाप उड़ गया होगा
पर न देखा माँ की ममता ने
बाप के साये ने
वह पल जिसमें किसी की मृत्यु हुई थी
जगत चलता रहा अलग-थलग
घिसटता रहा कोई अपनी ही ऊँगली थामे
चल पड़ा एकाकी सूनी राह पर
ठोकर खायी
नहीं देखा किसी ने, न पूछा कुछ
वह बूढ़ा हो गया असमय
दुनिया वंचित रही एक यौवन से
बिखरे मोतियों को न जोड़ा किसी ने
न बनाया हार, न पहना गले में !
मार्मिक !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
कल 15/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत बहुत आभार !
हटाएंहकीकत बयाँ करती रचना
जवाब देंहटाएंआभार राजीव जी !
जवाब देंहटाएंमार्मिक व वास्तविक चित्रण
जवाब देंहटाएंसुन्दर एवं मार्मिक ..
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक सच्चाई बयां करती प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर एवं मार्मिक रचना है बधाई आपको इस रचना संयोजन के लिए ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक होता है हमेशा इन्हें देखना। .... कितना कुछ होने पर भी हालात बदल नहीं रहे देश में |
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