गुलाब और वह
पूछा गुलाब से
उसकी ख़ुशी का राज
काँटों में भी मुस्कुराने का
देख अनोखा अंदाज
रंगो-खुशबू की कर रहा था
अनायास ही बरसात
धूप-हवा पानी में
झूमता दिन रात !
बोला, उससे पहले
हँस दिया खिलखिला कर
हुई दिशाएं लाल
उसकी मोहक अदा पर
चाहा सदा ही गुलाब होना
होकर कभी न पछताया
नहीं कुछ अन्यथा होने का
भाव भी मन में आया
सत्य हूँ सत्य को स्वीकारता
जैसा हूँ उसे ही अपना होना मानता !
चौंका वह बात सुन गुलाब की
कुछ और हो जाने की
जो भीतर जलती थी आग
हो आई बड़ी ही शिद्धत से याद
अचानक उतर गया कोई बोझ भारी मन से
भर गया कण-कण किसी अनजानी पुलक से
एक गहरी मुस्कान भीतर से सतह पर आई
जन्मों से छिपी थी जो तृप्ति छलक आई !
सत्य हूँ सत्य को स्वीकारता
जवाब देंहटाएंजैसा हूँ उसे ही अपना होना मानता !
...बिल्कुल सही...यही खुशियों का राज़ है...
बहुत सुन्दर ...जीवन का भी यही सत्य है ,गुलाब के माध्यम से बहुत सुन्दरता से व्यक्त किया ,बधाई आपको अनीता जी
जवाब देंहटाएंसच.......स्वयं को स्वीकारना ही सबसे बड़ा सुख है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना..
सादर
अनु
सौ बातों की एक बात कह दी आपने तो .
जवाब देंहटाएंअपने सत्य को स्वीकार कर सहजता से जीना ही सबसे बडी लेकिन कठिन बात है । लेकिन गुलाब का सच तो वैसे ही सर्वप्रिय और सर्वमान्य है ।
जवाब देंहटाएंजो आज कठिन लगता है एक दिन सरल हो जाता है...
हटाएंजीवन की कहानी एक गुलाब के जुबानी..यथार्थपूर्ण मनमोहक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंमनमोहक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकैलाश जी, राजेश जी, प्रतिभा जी, ओंकार जी, माहेश्वरी जी, शिल्पा जी, अनु जी व गिरिजा जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर.. बहुत अच्छी लगी..आभार..
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