एक लहर शिव व सुंदर की
स्पृहा सदा सताती मन को
बढ़ जाता तब उर का स्पंदन,
सदानीरा सी मन की धारा
कभी न लेने देती रंजन !
संपोषिका प्रीत अंतर की
खो जाती हर पीड़ा जिसमें,
एक लहर शिव व सुंदर की
भर जाती थिरकन उर में !
मिटे स्पृहा प्रीत जगे जब
मुक्त खिलेगा अंतर उपवन,
सत्य साक्षी होगा जिस पल
सहज छंटेगा तिमिर का अंजन !
सुंदर लेखन , आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
zaroor chhatenga timir ka anjan.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआशीष जी, मनोज जी, सुमन जी, प्रतिभा जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंभाव सौन्दर्य दर्शनीय है !
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