साझीदार
परमात्मा को हटा दें तो
इस जगत में बचता ही क्या है ?
उसका ऐश्वर्य !
उसकी विभूतियाँ और अनंत साम्राज्य !
मानव चाहे तो बन सकता है
उसका साझीदार
अन्यथा रह सकता है मात्र पहरेदार !
चुनना है उसे
मान अपना निहारना
या पुकारना
(जैसे कि वह कहीं दूर हो)
भीतर झाँकते ही द्वार खुलने लगता है
जैसे जल में डोलती नौका को
मिल जाता है आधार
अथवा तो कम्पित उर को
आश्वस्ति भरा स्वीकर
प्रेम को हटा दें तो
जीवन में बचता ही क्या है ?
उसका अपनापन ! आत्मीयता और दुलार !
उसका अनंत फैलाव
मानव चाहे तो खो सकता है
अपना अहंकार
अन्यथा करता रह सकता है
संबंधों में व्यापार !
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भाव.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 31/08/2014 को "कौवे की मौत पर"चर्चा मंच:1722 पर.
जवाब देंहटाएंओंकार जी व राजीव जी, स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंगणपति वन्दना (चोका )
हमारे रक्षक हैं पेड़ !