शनिवार, अगस्त 30

साझीदार


साझीदार


परमात्मा को हटा दें तो
इस जगत में बचता ही क्या है ?
उसका ऐश्वर्य !
उसकी विभूतियाँ और अनंत साम्राज्य !
मानव चाहे तो बन सकता है
उसका साझीदार
अन्यथा रह सकता है मात्र पहरेदार !
चुनना है उसे
मान अपना निहारना
या पुकारना
(जैसे कि वह कहीं दूर हो)
भीतर झाँकते ही द्वार खुलने लगता है
जैसे जल में डोलती नौका को
 मिल जाता है आधार
अथवा तो कम्पित उर को
आश्वस्ति भरा स्वीकर
प्रेम को हटा दें तो
जीवन में बचता ही क्या है ?
उसका अपनापन ! आत्मीयता और दुलार !
उसका अनंत फैलाव
मानव चाहे तो खो सकता है
अपना अहंकार
अन्यथा करता रह सकता है
संबंधों में व्यापार !

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